
पाकिस्तान में महिला श्रम भागीदारी दुनिया में सबसे कम: रिपोर्ट
एथेंस। पाकिस्तान में महिला श्रम बल भागीदारी (फीमेल लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन) दुनिया में सबसे कम स्तर पर बनी हुई है। इसका मुख्य कारण गहरी जड़ें जमाए सांस्कृतिक मान्यताएं, संस्थागत कमजोरियां और संरचनात्मक असमानताएं हैं। यह बात एथेंस स्थित थिंक टैंक डायरेक्टस की एक रिपोर्ट में सामने आई है।
रिपोर्ट के अनुसार, इन चुनौतियों से निपटने के लिए व्यापक सुधारों की जरूरत है। इसमें श्रम कानूनों के प्रभावी क्रियान्वयन, चाइल्ड केयर सुविधाओं की उपलब्धता, सुरक्षित परिवहन, डिजिटल और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना और महिलाओं की आवाजाही व स्वायत्तता पर रोक लगाने वाली भेदभावपूर्ण सामाजिक सोच को खत्म करना शामिल है।
रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि यदि लक्षित हस्तक्षेप नहीं किए गए, तो यह असमानताएं गरीबी और अविकास के चक्र को और मजबूत करेंगी, जिससे पाकिस्तान की लगभग आधी आबादी की आर्थिक क्षमता हाशिये पर ही रह जाएगी। डायरेक्टस की रिपोर्ट में कहा गया है कि 15 से 64 वर्ष आयु वर्ग की महिलाओं में पाकिस्तान की फीमेल लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन दर मात्र 22.6 प्रतिशत है, जो वैश्विक औसत 52.6 प्रतिशत से काफी कम है। यह दक्षिण एशिया के औसत 25.2 प्रतिशत से भी नीचे है। शहरी क्षेत्रों में, जहां आमतौर पर आर्थिक अवसर अधिक होते हैं, स्थिति ज्यादा बेहतर नहीं है। राजधानी इस्लामाबाद में महिलाओं की श्रम भागीदारी केवल 22.5 प्रतिशत है, जबकि पुरुषों की भागीदारी 67 प्रतिशत तक है।
रिपोर्ट के मुताबिक, शहरी महिलाओं को भी सीमित आवाजाही, सामाजिक दबाव और पारिवारिक सहयोग की कमी जैसी अतिरिक्त चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके लिए कामकाजी जीवन में प्रवेश करना और टिके रहना मुश्किल हो जाता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि संरचनात्मक असमानताओं और गहरी जमी सामाजिक मान्यताओं का मेल इन विषमताओं को बढ़ाता है। घरेलू जिम्मेदारियों को लेकर लैंगिक अपेक्षाएं, वेतन में अंतर, वित्तीय सेवाओं और उच्च आय वाले क्षेत्रों तक सीमित पहुंच, महिलाओं को आर्थिक रूप से हाशिये पर धकेलती हैं।
इसके अलावा, रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि आर्थिक और राजनीतिक बहिष्कार के साथ-साथ पाकिस्तानी महिलाओं को सामाजिक और सुरक्षा संबंधी बाधाओं का भी सामना करना पड़ता है। खासतौर पर राजनीति, मीडिया और सामाजिक सक्रियता से जुड़ी महिलाओं को लैंगिक हिंसा, उत्पीड़न और चरित्र हनन जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि महिला राजनेताओं और पत्रकारों को अक्सर डराने-धमकाने और बदनाम करने के अभियान झेलने पड़ते हैं, ताकि उनकी भागीदारी को कमजोर किया जा सके। ऐसे शत्रुतापूर्ण माहौल न केवल महिलाओं को सार्वजनिक जीवन में आने से हतोत्साहित करते हैं, बल्कि महिला नेतृत्व और स्वायत्तता पर सवाल खड़े करने वाली सोच को भी मजबूत करते हैं।
-आईएएनएस
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