क्या हैं शादी की पाठशाला
मिजाज पर काबू करना
शादी के पहले उनका मिजाज एकदम अलग होता है। वे अपने करिअर के बारे में ज्यादा सोचती और प्लानिंग करती है। उन्हें ज्यादा आजादी
मिली होती है। लेकिन शादी के बाद उन्हें अपनी सोच, रवैए और व्यवहार में
बदलाव लाना जरूरी हो जाता है। धीरे-धीरे वे समझ पाती हैं कि अब उनकी जिंदगी
कई दूसरे लोगों के साथ जुड गयी है। वे इस बात की ओर ध्यान देना शुरू करती
हैं कि उनके सास-ससुर और पति की क्या जरूरते हैं। उनका परिवार किस तरह का
है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार आजकल लडकियां ऐसे परिवार से आती हैं, जहां
उनको कहीं आने-जाने, फैसला लेने, घूमने-फिरने की पूरी स्वतंत्रता होती है।
शादी के बाद वे अपने आपको अचानक भिन्न माहौल में पाती हैं। ससुरालवाले कुछ
माइनों में काफी रूढिवादी हो सकते हैं। यह फर्क बहू के गले नहीं उतरता है
और काफी परेशानियां खडी हो जाती हैं, जबकि अपनी और परिवार की खुशहाली के
लिए सामंजस्य बिठना बहुत जरूरी है।
अगर अपने अंदर परिवर्तन नहीं लाया
जाएगा और मैं-मैं-मैं का राग अलापा जाता रहेगा, तो कभी भी ससुराल से कोई
मदद नहीं मिलेगी। ये बदलाव दोनों ओर से जरूरी होते हैं, पर नई बहू को
ज्यादा एडजस्ट, ज्यादा समझौता करना होता है और परिवार के हिसाब से खुद को
ढालना होता है, क्योंकि वह किसी के परिवार में शामिल हो रही है, इसलिए अपनी
कोशिशों से उसको नए घर में अपनी जगह बनानी होती है।