क्या हैं शादी की पाठशाला
खुद को बहू समझना
यदि वह ऐसे परिवार से आयी है, जहां उसे खूब खुलापन
मिला है, पर ससुराल में सिर ढकना है, पैर छूने हैं, सुबह उठकर चाय बनानी
है, तो वह सबसे पहले एक सीमा तय करती है कि उसको कहां, कितना सामंजस्य
स्थापित करना है। उसको यह फर्क समझ में आता है कि ससुराल उसके मायके वाले
परिवार से जुदा है। उसे अहसास होता है कि मायके जितनी आजादी यहां नहीं मिल
सकती है। यहां मैं एक बेटी नहीं जिम्मेदार बहू हूं। बहू की पहचान घर से
जुड़ जाती है। समझदार लडकियां जानती हैं कि यदि वे खुद को उस घर के हिसाब
से नहीं ढालेंगी, अपनी ही चलाएंगी तो मुश्किल हो जाएगी। परिवार की खुशी के
लिए अपने रवैये में तो वे परिवर्तन लाती ही हैं और यह समझती हैं कि इसी तरह
मेरी मां ने भी खुद को बदला होगा और संबंधों को निभाया होगा।