
माहे-ए-रमजान:इबादत और नेकियों का महीना
जब
 अल्लाह की रहा में देने की बात आती है तो हमारी जेबों में सिर्फ चंद रूपए 
निकलते हैं, लेकिन जब हम अपनी शॉपिंग के लिए बाजार जाते हैं वहां हजारों 
खर्च कर देते हैं। कोई जरूरतमंद अगर हमारे पास आता है तो उस वक्त हमको अपनी
 कई जरूरतें याद आ जाती हैं। यह लेना है, वह लेना है, घर में इस चीज की कमी
 है। बस हमारी ख्वाहिशें खत्म होने का नाम ही नहीं लेती हैं।






