गुलजार की हसीना नज्में पेश हैं...
तुम्हारे गम की डली उठा कर जुबान पर रख ली हैं मैंने वह कतरा-कतरा ही जी रहा हूं पिघल पिघल कर गले से उतरेगी, आखरी बूंद दर्द की जब मैं सांस की आखरी गिरह को भी खोल दूंगा।
तुम्हारे गम की डली उठा कर जुबान पर रख ली हैं मैंने वह कतरा-कतरा ही जी रहा हूं पिघल पिघल कर गले से उतरेगी, आखरी बूंद दर्द की जब मैं सांस की आखरी गिरह को भी खोल दूंगा।