गुलजार की हसीना नज्में पेश हैं...

गुलजार की हसीना नज्में पेश हैं...

सांस लेना भी कैसी आदत है जीये जाना भी क्या रवायत है कोई आइट नहीं बदन में कहीं कोई साया नहीं है आंखों में पांव बेहिस हैं, चलते जाते हैं इक सफर है जो बहता रहता है कितने बरसों से, कितनी सदियों से जिये जाते हैं, जिये जाते हैं... अदतें भी अजीब होती हैं

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