"आकाश" के वायुसेना प्रारूप का सफल परीक्षण

बालेर (ओडिशा)। भारत ने शुक्रवार को स्वदेशी रूप से विकसित सतह से हवा में मार करने वाली दो "आकाश" मिसाइलों के वायुसेना प्रारूप का सफल परीक्षण किया। चांदीपुर के एकीकृत परीक्षण रेंज (आईटीआर) से 25 किलोमीटर की मारक क्षमता वाली इस मिसाइल का परीक्षण किया गया। आईटीआर के निदेशक एम.वी.के.वी प्रसाद ने कहा, "एक के बाद एक आकाश मिसाइलों के वायुसेना प्रारूप का परीक्षण आईटीआर से किया गया ।

दोनों परीक्षण सफल रहे और मिशन के सारे मकसद पूरे हुए।" अपने साथ 60 किलोग्राम आयुध ले जाने में सक्षम यह विमानरोधी मिसाइल आईटीआर के प्रक्षेपण परिसर-तीन से प्रक्षेपित की गई। "आकाश" मिसाइल परियोजना से जुडे रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (डीआरडीओ) के एक अधिकारी ने कहा कि देश के नियमित वायु रक्षा अभ्यासों के तहत दोपहर को यह प्रक्षेपण किया गया।

अधिकारी ने बताया कि मिसाइल की प्रौद्योगिकी और परिचालनात्मक प्रभावशीलता को फिर से मान्य करने के लिए रक्षा बलों ने आईटीआर की ओर से मुहैया करायी गई लॉजिस्टिक मदद के साथ यह परीक्षण किया। थलसेना प्रारूप से लैस आकाश प्रेक्षपास्त्र प्रणाली साल 2008 में सशस्त्र बलों में शामिल की गई थी। गौरतलब है कि 24, 26 और 28 मई को भी "आकाश" मिसाइलों का परीक्षण किया गया था। "ट्रायल के दौरान मिसाइलों का मकसद एक तैरती हुई वस्तु को भेदना था। इस वस्तु को समुद्र के ऊपर एक निश्चित ऊंचाई पर स्थित प्रक्षेपण परिसर-2 से एक पायलट रहित विमान का सहारा मिला हुआ था।"

विमान-रोधी रक्षा प्रणाली "आकाश" इलेक्ट्रॉनिक्स एंड रडार डवलेपमेंट इस्टैब्लिशमेंट (एलआरडीई) की ओर से विकसित बहुविध "राजेंद्र" रडार के साथ एक बार में ही कई निशाने भेद सकता है। एलआरडीई बेंगलुरू में स्थित डीआरडीओ की एक प्रयोगशाला है। रेडार निगरानी रखने, निशाने का पता लगाने, इसे हासिल करने और मिसाइल को इसकी ओर गाइड करने का काम करता है। रक्षा विशेषज्ञों ने "आकाश" मिसाइल पण्राली की तुलना अमेरिकी "एमआईएम-104 पैट्रियट" से की है। "एमआईएम-104 पैट्रियट" सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली है।