ओह माय गॉड : अंधविश्वास से परदा उठाती

ओह माय गॉड : अंधविश्वास से परदा उठाती

फिल्म "ओह माय गॉड" एक भक्त और उसकी भगवान के प्रति आस्था पर आधारित है। धर्म की आड में किस तरह बिचौलिये व पाखंडी लोग अपनी मतलब की रोटियां सेंक रहे हैं, इस पर तर्क पूर्वक पूरी बात कही गयी है।

ओह माय गॉड अक्षय कुमार ने बतौर निर्माता एक बेहतरीन और मौलिक कहानी दर्शकों के सामने पेश की है। इसलिए किसी भ्रम में बिल्कुल न रहें और फिल्म जरूर देखें। चूंकि इस लिहाज से यह फिल्म एक महत्वपूर्ण फिल्म है कि इसे देखने के बाद कई अंधविश्वासों पर से परदा उठेगा। फिल्म किसी धर्म के विरूद्ध नहीं है।

यह फिल्म की सबसे खास बात है। कांजीभाई के रूप में परेश ने हंसते-हंसाते कई महत्वपूर्ण बातें कह दी है। विशेषकर उस वर्ग को यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए, जो यह मानते हैं कि दान-दक्षिणा से ही भगवान खुश होते हैं। फिल्म में कई बेहतरीन उद्देश्य पूर्ण संवाद भी हैं। निर्देशक उमेश शुक्ला ने कांजी विरूद्ध कांजी प्ले को फिल्म में सार्थक रूप में पेश किया है। हिंदी फिल्मों में अब तक भगवान को पारंपरिक पोषाकों में दिखाया जाता रहा है। लेकिन ओह माइ गॉड में अक्षय ने भगवान की भूमिका को भी प्रयोगात्मक रूप देने की कोशिश की है।

फिल्म की कहानी में कांजी मेहता एक एंटिक शॉप चलाते हैं। उनके लिए भगवान की पूजा और बिजनेस में कोई फर्क नहीं है। जबकि उनकी पत्नी भगवान की भक्त हैं। शहर में भूकंप आने की खबर मचती है और कांजी की दुकान टूट जाती है।

कांजी तय करता है कि वह भगवान के खिलाफ केस दर्ज करेंगे। क्योंकि इसके लिए वह भगवान को ही दोषी मानते हैं। इस क्रम में उनके सामने कई हकीकत आते-जाते हैं। लेकिन अक्षय के रूप में खुद भगवान आकर कांजी से मिलते हैं तो कहानी में नया मोड आता है।