भारतीय हॉकी को सताती रहेगी ओलंपिक की पीडा

भारतीय हॉकी को सताती रहेगी ओलंपिक की पीडा

भारतीय टीम की लगातार छठी हार के बाद ओलंपिक खेलों में आखिरी स्थान पर रहने की पीडा भारतीय हॉकी आगे भी सताती रहेगी। इससे पता चलता है कि भारतीय टीम को इस स्तर पर खेलने लायक बनाने के लिए अभी काफी कुछ करने की जरूरत है। सबसे बडा सवाल भारतीय टीम की ओलंपिक तैयारियों को लेकर खडा होता है। चाहे वह फिटनेस या मानसिक स्थिति हो, भारतीय टीम में ओलंपिक खेलों के लिहाज से कतई तैयार नहीं दिखी। क्या वास्तव में भारतीय टीम इस अभियान के लिए तैयार थी। यह ऎसा सवाल है जो जवाब चाहता है। इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए कि दुनिया भर के कई खिलाडी और टीमें ओलंपिक खेलों में भाग लेने और अच्छा प्रदर्शन करने के लिए चार साल तक तैयारी करते हैं। भारतीय टीम में इस तरह के प्रतिस्पर्धी टूर्नामेंट में चोटी की टीमों से खेलने के लिए अनुभव की कमी साफ दिखी। भारत हाल तक जिन टीमों के बराबरी पर माना जाता था उनसे भिडने के दौरान भारतीयों की मानसिक कमजोरी साफ नजर आई। यदि हम बीजिंग ओलंपिक के लिए भारतीय टीम के क्वालीफाई नहीं कर पाने को छोड दें तो यह ओलंपिक खेलों में उसका सबसे बुरा प्रदर्शन है। हम अटलांटा ओलंपिक 1996 में आठवें स्थान पर रहे थे लेकिन यह तो उससे भी बुरा है। इसके अलावा अंतिम स्थान पर रहने से लंदन में ही 1986 विश्व कप में आखिरी स्थान पर रहने की पीडादायक यादें ताजा हो गई। सभी भारतीय हॉकी प्रेमियों को उम्मीद थी कि टीम कम से कम आखिरी मैच जीतने में सफल रहेगी। 11वें स्थान पर रहने से भारतीय अभियान की कमजोरियां कम नहीं हो जातीं लेकिन आखिरी स्थान पर रहना युवा खिलाडियों के दिमाग में गहरी छाप छोड सकता है। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ मैच में भारतीय स्ट्राइकर अपनी प्रतिष्ठानुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाए और उन्होंने कई मौके गंवाए जबकि दूसरे छोर पर रक्षापंक्ति छितरी हुई दिखी। स्ट्राइकर अक्सर सर्किल में घुसने में कामयाब रहते लेकिन जैसे ही स्कोर बनाने को होता तो लगता कि उनके पास रणनीति की कमी है। यहां तक कि पेनल्टी कार्नर हासिल करना भी उनके दिमाग में नहीं रहता। इसके अलावा पेनल्टी कार्नर पर आपको हमेशा सफलता नहीं मिलती। संदीप सिंह ने भारत के पहले पेनल्टी कार्नर पर फ्लिक से गोल किया लेकिन दूसरे हाफ में दो अन्य पेनल्टी दक्षिण अफ्रीकी गोलकीपर को परेशान नहीं कर पाई। दक्षिण अफ्रीका के गोल देखो। पहले हाफ में किए गए दोनों गोल अवसर का फायदा उठाने और तेजी से रणनीति बनाने का अच्छा नमूना थे।