फिल्म समीक्षा : हीरोइन

फिल्म समीक्षा : हीरोइन

मधुर भंडारकर की फिल्म "हीरोइन" ग्लैमर की दुनिया को खंगालती कहानी है। एक अभिनेत्री के बहाने मधुर ने बॉलीवुड में अभिनेत्रियों की जिंदगी से जु़डे हर पहलू को दर्शाने की कोशिश की है। मधुर इस फिल्म से एक सनकी मिजाज की अभिनेत्री की जिंदगी की परत-दर-परत घूमती कहानी को दर्शाने की कोशिश की है।

इस फिल्म को लेकर मधुर भंडारकर अति आत्मविश्वास में हैं इसका अहसास फिल्म की शुरूआत की कुछ रील के बाद ही होने लग जाता है जब वे अपनी फिल्म के कथानक से उतरने लग जाते हैं। अफसोस होता है उनकी निर्देशकीय क्षमता पर जिस उद्योग का वो खुद एक हिस्सा हैं उसी की कहानी उन्होंने बेहद ही सतही तरीके से दर्शकों के सामने रखी है। जिस निर्देशक ने दर्शकों के साथ-साथ बॉलीवुड को चांदनी बार, पेज थ्री, सत्ता और फैशन जैसी फिल्में दी हों उससे ऎसी निम्न स्तर की फिल्म की कल्पना नहीं की जा सकती थी।

हम मधुर की इस हीरोइन को बॉलीवुड पर व्यंग्य के रूप में नहीं देख सकते हैं। हीरोइन के साथ सबसे बडी दिक्कत यही है कि ये फिल्मी दुनिया के सिर्फ अनैतिक पहलू को बेहद ही सतही तरीके से दिखाने की कोशिश करती है। जिस पहलू को भंडारकर ने अपनी फिल्म में दिखाने का प्रयास किया है वह सिर्फ यहां ही नहीं बल्कि हर जगह ऎसे लोग होते हैं जो ओछे तरीकों से अपनी स्वार्थ सिद्धि में लगे रहते हैं। क्या ये बुरा पहलू ही फिल्म उद्योग का आईना है।

आम तौर पर फिल्म उद्योग को लेकर लोगों के मन में जो धारणा है, उसे मधुर भंडारकर ने अपनी इस फिल्म में बदलने की कोई कोशिश नहीं की है। उन्होंने इसी सोच को ध्यान में रखते हुए नायिका को ड्रग्स और शराब पीने का आदी बताया है। वास्तविकता यह है कि फिल्म उद्योग की हर नायिका ऎसी हीं होती है। एक वक्त था जब शराब पीने के लिए बॉलीवुड की ट्रेजडी `ीन मीनाकुमारी का जिक्र सबसे पहले किया जाता था।