खामोश हो गया गजल का शहंशाह

खामोश हो गया गजल का शहंशाह

कराची। गजल की दुनिया अभी जगजीत सिंह के असामयिक निधन से उबर भी नहीं पाई थी कि एक और गजल गायक इस दुनिया को अलविदा कह गया। गजल के शहंशाह मेहंदी हसन का बुधवार को इंतकाल हो गया। वह कराची के आगा खान अस्पताल में भर्ती थे, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। 84 वर्षीय मेहंदी हसन पिछले 12 साल से बीमार चल रहे थे। वह फेंफ़डों में संक्रमण से पीडित थे। मेंहदी हसन का जन्म भारत के राजस्थान के झुंझुनूं जिले के लूणा गांव में 18 जुलाई 1927 को हुआ था। मेहंदी हसन की कलावंत घराने में उनसे पहले की 15 पीढियां भी संगीत से ही जुडी हुई थीं।

उन्होंने संगीत की आरंभिक शिक्षा अपने पिता उस्ताद अजीम खान और चाचा उस्ताद ईस्माइल खान से ली। दोनों ही ध्रूपद के अच्छे जानकार थे। भारत-पाक बंटवारे के बाद उनका परिवार पाकिस्तान चला गया। वहां उन्होंने कुछ दिनों तक एक साइकिल दुकान में काम किया और बाद में मोटर मेकैनिक का भी काम किया लेकिन संगीत को लेकर जुनून कम नहीं हुआ। 1950 का दौर उस्ताद बरकत अली, बेगम अख्तर, मुख्तार बेगम जैसों का था, जिसमें मेहंदी हसन के लिये अपनी जगह बना पाना सरल नहीं था। एक गायक के तौर पर उन्हें पहली बार 1957 में रेडियो पाकिस्तान में बतौर ठुमरी गायक पहचान मिली। उसके बाद मेहंदी हसन ने पीछे मुड कर नहीं देखा।

1957 से 1999 तक सक्रिय रहे मेंहदी हसन ने गले के कैंसर के बाद पिछले 12 सालों से गाना छोड दिया था। उनकी अंतिम रिकार्डिग 2010 में सरहदें नाम से आई, जिसमें फरहत शहजाद की लिखी तेरा मिलना बहुत अच्छा लगे है की रिकार्डिग उन्होंने 2009 में पाकिस्तान में की और उस ट्रेक को सुनकर 2010 में लता मंगेशकर ने अपनी रिकार्डिग मुंबई में की। इस तरह यह युगल अलबम तैयार हुआ।