फिल्म समीक्षा : गैंग्स ऑफ वासेपुर-2

फिल्म समीक्षा : गैंग्स ऑफ वासेपुर-2

बैनर : वायकॉम 18 मोशन पिक्चर्स
निर्माता : अनुराग कश्यप, सुनील बोहरा, गुनीत मोंगा
निर्देशक : अनुराग कश्यप
संगीत : स्नेहा खानवलकर
कलाकार : मनोज वाजपेयी, नवाजुद्दीन शेख, ऋचा चड्ढा, हुमा कुरैशी, रीमा सेन, राजकुमार यादव

एक्शन में दिलचस्पी रखने वाले दर्शकों के लिए गैंग्स ऑफ वासेपुर=2 एक परफैक्ट फिल्म है। फिल्म धनबाद के छोटे से जिले वासेपुर में सरदार खान की हत्या के बाद किस तरह उसका बेटा फैजल खान बदला लेता है, इस पर आधारित है। फिल्म में खून खराबे के बेहद खौफनाक दृश्य दिखाए गए हैं, जिन्हें कमजोर दिल वालों के लिए देखना थोडा मुश्किल होगा। तकनीकी दृष्टि से देखा जाए तो अनुराग कश्यप की फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है। लेकिन समय की अवधि को देखा जाए तो यह फिल्म दर्शकों को बेहद लम्बी नजर आती है। दूसरी बात मध्यान्तर से पूर्व का हिस्सा जितना कसावट लिए है उसके बाद की फिल्म उतनी मजबूत नहीं है। अनुराग कश्यप ने यह फिल्म एक ही शूट में लगातार फिल्माई थी, इसलिए इसके दूसरे भाग को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि यह इसका सीक्वल है। फिल्म की अत्यधिक लम्बाई के कारण ही अनुराग ने इसे दो भागों में बांटा था, जहां पर पहला भाग खत्म होता, वास्तविकता में वहां पर फिल्म का मध्यान्तर है, और जहां से फिल्म का दूसरा भाग शुरू होता है, वास्तव में वह फिल्म का पूर्वार्द्ध है।

गैंग्स ऑफ वासेपुर के दोनों भाग एक साथ ही देखे जाने चाहिए, वरना किरदारों को याद रखने में परेशानी हो सकती है। जिन लोगों को पहला भाग देखे हुए लंबा समय हो गया है उन्हें कठिनाई महसूस हो सकती है क्योंकि फिल्म का दूसरा भाग ठीक वही से शुरू होता है जहां पहला खत्म होता है। पहले भाग का रिकेप होता तो शायद बेहतर होता। फिल्म का हर पहलू अपने आप में अपनी छाप छोडता है। गीत, संगीत, छायांकन, सम्पादन, अभिनय सभी का दर्शकों पर प्रभाव साफ नजर आता है। महिला संगीतकार स्नेहा खानवलकर ने गैंग्स ऑफ वासेपुर से संगीतकार के तौर पर जबरदस्त वापसी की है। फिल्म के गीत संगीत का अन्तिम हिस्से में उन्होंने जिस अंदाज में प्रयोग किया है वह बेहतरीन है। उन्होंने पीयूष मिश्रा और वरूण ग्रोवर के गीतों को लोक धुनों से सजाया है। ढोल मंजीरों के साथ तबले और ढोलक का जिस तरह से उन्होंने प्रयोग किया है वह दर्शकों को थिरकने के लिए मजबूर करता है।

यशपाल शर्मा के गाए गीत और बैंड फिल्म के दृश्यों को मार्मिक बनाते हैं। गीत और पाश्र्व संगीत के सही उपयोग से फिल्म अधिक प्रभावशाली और अर्थपूर्ण हो गई है। वैसे तो फिल्म की सफलता असफलता के लिए हर बार निर्देशक को जिम्मेदार ठहराया जाता है। यहां भी ऎसा ही है। फिल्म के पहले भाग के लिए अनुराग कश्यप की भरपूर तारीफ की जा चुकी है, यहां भी उनकी तारीफ है लेकिन इस बार इस तारीफ में उनकी पूरी टीम शामिल है। कास्टिंग निर्देशक मुकेश छाबडा ने पटकथा की मांग के अनुरूप किरदारों का चयन किया है, वहीं परिधान निर्देशक सुबोध श्रीवास्तव ने फिल्म के किरदारों को समय के हिसाब से कपडे पहनाए हैं। उन्होंने किरदारों के कपडों के साथ उनके मिजाज को भी ध्यान में रखा है। छायाकार राजीव रवि की तारीफ के लिए हमारे पास शब्द नहीं हैं। उन्होंने भीडभरे बाजारों के दृश्यों को जिस खूबसूरती से परदे पर उकेरा है उतनी ही खूबसूरती के साथ उन्होंने अपने कैमरे में एकल दृश्यों को उतारा है। फिल्म के हर फ्रेम में उनकी छाप नजर आती है। कुछ ऎसा ही काम अनुराग के द्वंद्व निर्देशक ने किया है।

एक्शन दृश्यों में जहां उन्होंने देसी हथियारों का इस्तेमाल किया है वहीं उन्होंने आधुनिक हथियारों में गोलियों का भी खुलकर उपयोग किया है। दो व्यक्तियों के मध्य फिल्माए गए एक्शन दृश्यों में उनकी मेहनत झलकती है, हां थोडी से तकलीफ उन्हें भीडभरे बाजारों में फिल्माए गए दृश्यों में जरूर हुई होगी क्योंकि वे वास्तविक बाजारों में फिल्माए गए हैं लेकिन यहां भी उन्होंने अपने हिसाब से कैमरे का अच्छा उपयोग किया है। अभिनय की बात की जाए तो नवाजुद्दीन बॉलीवुड के नए संजीव कुमार साबित होंगे। उन्होंने जिस अंदाज में अपनी अभिनय रेंज को इस फिल्म में झलकाया है उससे निश्चित तौर पर उन्हें उन निर्देशकों का साथ मिलेगा जो आजकल किरदारों के अनुरूप कलाकारों का चयन करते हैं। यह अनुराग की हिम्मत है जिन्होंने नवाजुद्दीन सिद्दीकी को केन्द्रीय भूमिका निभाने की जिम्मेदारी दी है। नवाजुद्दीन ने अपने लुक और प्रस्तुतीकरण के जरिए पारम्परिक हीरो की धारणा को तोडा है। फिल्म का ऎसा कोई भी फ्रेम नजर नहीं आता जहां उनकी अभिनय क्षमता पर उंगली उठाई जा सके। इसके साथ ही फिल्म के हर किरदार ने अपनी अभिनय क्षमता का लोहा मनवाया है।

अनुराग कश्यप ने जिस अंदाज में देश के गुमनाम हिस्से को अपने प्रस्तुतीकरण से चर्चा में ला दिया है वह देखते ही बनता है। अपने पहले हिस्से की तरह ही वासेपुर का दूसरा भाग झकझोरता है। हालांकि अनुराग ने इस हिस्से में गालियों और गोलियों का उपयोग अतिरेक की हद तक किया है। इस प्रयास के साथ ही उन्होंने आजादी के बाद भारत के एक इलाके में आई तमाम परिवर्तनों को पूरी सच्चाई के साथ परदे पर उतारा है। हालांकि पहले भाग को देखकर वासेपुर के लोगों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी लेकिन यह तय है कि अब जब वासेपुर के लोग इस दूसरे भाग को देखेंगे तो निश्चित तौर पर वे असहज और बेचैन होंगे, क्योंकि उन्हें यह उम्मीद नहीं होगी कि कोई फिल्मकार इतनी सच्चाई और कडवाहट के साथ उनके यथार्थ को परदे पर ला सकता है।