दोस्ती और रिश्तों का खूबसूरत पैगाम

दोस्ती और रिश्तों का खूबसूरत पैगाम

पिछले कुछ समय से खूबसूरती को लेकर जितना बदलाव समजा में आया है, उतना शायद ही कहीं और देखने को मिला हो, वैसे खूबसूरती से भारतीय सिनेमा भी अछूता नहीं है। खूबसूरत टाइटल के नाम से कई पिुल्में बन चुकी है, इनमें ऋषिकेश मुखर्जी की खूबसूरत तो इतनी यादगार साबित हुई कि उसके लिए खूबसूरत रेखा को हमेशा याद किया जाता रहा है पर अब डायरेक्टर शशांक घोष ने अपने डायरेक्शन इतना लाजवाब नहीं बन सका, जिसे देखकर खूबसूरत पर नाज हो सके हालांकि उन्होंने रिश्तो की चाशनी में लिपटी रंगों की तूलिका से कैनवास को सजाने की अच्छीह कोशिश की।
वैसे यह फिल्म ऋषिकेश की फिल्म से नही मिलती है। अब खबर यह है कि 1980 में महान फिल्म निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी ने अपनी ही फिल्म बावर्ची को थो़डा उलट-पुलट कर खूबसूरत बनाई थी। रेखा की यह श्रेष्ठ फिल्मों में से एक मानी जाती है। इसी का रीमेक निर्देशक शशांक घोष ने खूबसूरत के नाम से ही बनाया है। शशांक ने ऋषिदा की कहानी का मूल तो यथावत रखा है, लेकिन अपने मुताबिक कुछ बदलाव कर दिए हैं। शशांक जानते हैं कि ऋषिकेश मुखर्जी जैसी फिल्म बनाना उनके बस की बात नहीं है इसलिए बदलाव कर ही बनाया जाए तो बेहतर है। यह सीधे तौर पर तुलना से बचने की पतली गली भी है।
अस्सी में बनी खूबसूरत मध्यमवर्गीय परिवार की कहानी थी, जिसे बदलते हुए एलीट क्लास में ले जाया गया है। राजा-रजव़ाडे से बेहतर क्लास और क्या हो सकता है। वैसे भी उनमें परंपरा और शिष्टचार के नाम पर बहुत कुछ ऎसा होता है जो सामान्य परिवारों में नहीं होता। डॉ. मृणालिनी चRवर्ती उर्फ मिली (सोनम कपूर) फिजियोथेरेपिस्ट है। आईपीएल में कोलकाता नाइट राइडर्स टीम के लिए वह काम करती है। उसे राजस्थान के संभलगढ़ की रॉयल फैमिली के शेखर राठौर (आमिर रजा) के इलाज के लिए बुलाया जाता है। शेखर के पांव के इलाज के लिए मिली को उनके घर में ही कई दिनों तक रूकना होता है। शेखर की पत्नी रानी निर्मला (रत्ना पाठक शाह) अति शिष्ट और अनुशासन प्रिय है, लेकिन यह अच्छाई इतनी ज्यादा है कि घर के सदस्यों को कैद की तरह लगता है। शेखर और निर्मला का बेटा युवराज विRम (फवाद खान) भी मां का अंधभक्त है। मिली के इस रॉयल फैमिली में आते ही कायदे-कानून टूटने लगते हैं। वह बेहद लाउड है। जो मन में आता है बोल देती है। उसका मानना है कि सच को फिल्टर की जरूरत नहीं होती। बेवजह की रोक-टोक भी उसे पसंद नहीं है। धीरे-धीरे निर्मला को छो़ड परिवार के अन्य सदस्यों को मिली की हरकतें अच्छी लगने लगती हैं। शशांक घोष ने इस खूबसूरत में निर्मला के किरदार के प्रभाव को कम कर दिया है और मिली-विRम के रोमांस को ज्यादा फुटेज दिए है। साथ ही बैकड्रॉप बदलने से फिल्म का कलेवर अलग हो गया है। शुरूआत में मिली की शरारतें अच्छी लगती हैं, लेकिन जब इन्हें हद से ज्यादा खींचा जाता है तो फिल्म ठहरी हुई लगती है। कहानी आगे ही नहीं बढ़ती।
 मिली की हरकतें कहीं-कहीं कुछ ज्यादा ही हो गई। पहले ही दिन डाइनिंग टेबल पर आकर वह निर्मला की बेटी से पूछती है कि क्या उसका कोई बॉयफ्रेंड हैक् मिली के किरदार को बिंदास दिखाने के चक्कर में निर्देशक कुछ जगह ज्यादा ही बहक गए। कहानी में कुछ कमजोर पहलू और भी हैं। जैसे मिली के अपहरण वाला किस्सा सिर्फ फिल्म की लंबाई को बढ़ाता है और इस प्रसंग का कहानी से कोई संबंध नजर नहीं आता। विRम की एक ल़डकी (अदिति राव हैदरी) से शादी भी तय हो जाती है और उस प्रसंग को भी हल्के से निपटाया गया है। साथ ही फिल्म के अंत में निर्मला का ह्वदय परिवर्तन अचानक हो जाना भी अखरता है। यह फिल्म घटना प्रधान नहीं है। कहानी में कुछ अगर-मगर भी हैं, बावजूद इसके यह बांध कर रखती है। मिली और राठौर परिवार की अलग-अलग शख्सियत के कारण जो नए रंग निकल कर आते हैं वे अच्छे लगते हैं। मिली की वजह से किरदारों के व्यवहारों में परिवर्तन तथा मिली और विRम के बीच पनपते रोमांस को देखना अच्छा लगता है। डिज्नी का प्रभाव शशांक के निर्देशन में नजर आता है। फिल्म के शुरूआत में ही डिज्नी ने दर्शकों को बता दिया कि किस तरह की फिल्म वे देखने जा रहे हैं। पूरी फिल्म में सॉफ्ट लाइट, सॉफ्ट कलर स्कीम का उपयोग कर हर फ्रेम को खूबसूरत बनाया गया है। फिल्म में कूलनेस और परफ्यूम की सुगंध को भी महसूस किया जा सकता है।
हर कलाकार सजा-धजा और फैशनेबल है। फिल्म में गंदगी का कोई निशान नहीं है, यहां तक कि मिली का अस्त-व्यस्त कमरा भी ब़डे ही व्यवस्थित तरीके से बिखरा हुआ लगता है। फिल्म के संवाद बेहतरीन हैं। खासतौर पर किरदारों के मन में जो चल रहा है उसे वाइस ओवर के जरिये सुनाया गया है और इसके जरिये कई बार हंसने का अवसर मिलता है। मिली और उसकी मां के बीच जोरदार संवाद सुनने को मिलते हैं। मिली अपनी मां को उसके पहले नाम से बुलाती है और दोनों के बीच बेहतरीन बांडिंग देखने को मिलती है। सोनम कपूर को दमदार रोल निभाने को मिला है, लेकिन उनका अभिनय एक जैसा नहीं रहता। कई सीन वे अच्छे कर जाती हैं तो कई दृश्यों में उनका अभिनय कमजोर लगता है।
फिर भी बबली गर्ल के रूप में वे प्रभावित करती हैं। प्रिंस के रोल में फवाद खान ने अपने चयन को सही ठहराया है। एक प्रिंस की अक़ड, स्टाइल को उन्होंने बारीकी से पक़डा। रत्ना पाठक शाह के बेहतरीन अभिनय किया है, उनके रोल को और बढ़ाया जाना था। लाउड पंजाबी मां का किरदार किरण खेर कई बार निभा चुकी हैं और इस तरह के रोल निभाना उनके बाएं हाथ का खेल है। खूबसूरत एक उम्दा पैकिंग की गई शकर चढ़ी लालीपॉप की तरह है, जिसका स्वाद सभी को पता है, बावजूद इसका मजा लेना अच्छा लगता है।
बैनर : वाल्ट डिज्नी पिक्चर्स, अनिल कपूर फिल्म्स कंपनी निर्माता : रिया कपूर, सिद्धार्थ रॉय कपूर, अनिल कपूर निर्देशक : शशांक घोष संगीत : स्त्रेहा खानवलकर कलाकार : सोनम कपूर, फवाद खान, रत्ना पाठक, आमिर रजा, किरण खेर, अदिति राव हैदरी (मेहमान कलाकार)