बासु चटर्जी : आम जिंदगी के कहानीकार
नई दिल्ली। उस दौर की कहानियां आम इंसान की जिंदगी के इर्द-गिर्द घूमती थी,
जिसमें वास्तविकता को हंसी-मजाक के साथ पेश किया जाता था। इसमें छोटी-छोटी
खुशियों व दुखों को बेहद ही सहजता के साथ दर्शकों के सामने लाया जाता था।
बॉलीवुड में सत्तर व अस्सी के दशक में मुख्यधारा की फिल्मों में आमतौर पर
इसी का चलन रहा है। फिल्मों की यह शैली ऋषिकेश मुखर्जी, बासु चटर्जी और
अमोल पालेकर के बिना अधूरी रह जाती।
कुछ समय पहले ऋषि दा के निधन के
बाद, बॉलीवुड में इस दौर को बासु चटर्जी ने अपने अकेले के दम पर बरकरार
रखा, लेकिन गुरुवार को उनके चले जाने के बाद इस शैली की फिल्मों ने भी अपना
दम तोड़ दिया।
बासु चटर्जी ने गुरुवार को मुंबई में 93 वर्ष की आयु
में अपनी आखिरी सांस ली। उम्र संबधी बीमारियों के चलते उनका निधन हुआ।
यहां स्थित सांता क्रूज श्मशान घाट में दोपहर को उनका अंतिम संस्कार किया
गया।
बासु ने अपनी फिल्मों में हीरो को एक आम इंसान के रूप में
दिखाया, जो कि हम में से ही कोई एक रहा। अपनी फिल्मों में इंसान की तमाम
भावनाओं को उन्होंने बड़ी ही सुगमता के साथ पेश किया। फिल्मों में उनकी
कहानी एक आम इंसान की जिंदगी से हूबहू मिलती-जुलती थी।
अभिनेता अमोल
पालेकर वह शख्स रहे हैं, जिन्होंने उनकी फिल्मों के किरदारों में जान
डालने का बीड़ा उठाया और उन्होंने इस काम को सफलतापूर्वक अंजाम भी दिया। छोटी सी बात (1975), चितचोर (1976), रजनीगंधा (1974) और बातों बातों
में (1979) कुछ ऐसी ही फिल्मों के उदाहरण हैं, जिसमें अमोल पालेकर मुख्य
भूमिका में रहे हैं।
बासु चटर्जी पिया का घर (1972), खट्टा
मीठा, चक्रव्यूह (1978), प्रियतमा (1977), मन पसंद, हमारी बहू
अल्का, शौकीन (1982) और चमेली की शादी (1986) जैसी अपनी फिल्मों में
कई इंसानी संवेदनाओं को हंसी के तड़के के साथ पेश किया।
अपने करियर में वह केवल बड़े पर्दे तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि छोटे पर्दे पर भी अभूतपूर्व काम किया।
इसमें कक्काजी कहिन (1998) शामिल है, जिसमें दिग्गज अभिनेता ओम पुरी मुख्य
किरदार में रहे हैं। यह एक राजनीतिक व्यंग्य है, जो मशहूर लेखक मनोहर श्याम
जोशी की किताब नेताजी कहिन पर आधारित थी। इसके अलावा दर्पण (1985), भीम भवानी (1990-1991) और बेहतरीन टीवी फिल्म एक रूका हुआ फैसला (1986)
भी टेलीविजन पर उनकी सफल परियोजनाओं में शामिल रही है।
साल 1993
में ब्योमकेश बख्शी धारावाहिक के साथ उन्होंने टीवी पर अपना दबदबा काफी
लंबे समय तक बनाए रखा। दर्शकों ने इसे काफी पसंद किया। साल 1997 में जब
इसके दूसरे सीजन को पेश किया गया, तो उस वक्त भी यह काफी सफल रहा। आज भी
इसे दूरदर्शन पर प्रसारित किया जाता है और लोग इसके मुरीद हैं।
गुरुवार
अपराह्न् दो बजे सांताक्रूज श्मशान घाट में उनका अंतिम संस्कार किया गया।
फिल्मकार अशोक पंडित ने उनके निधन की पुष्टि की, जो इंडियन फिल्म एंड टीवी
डायरेक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं।
पंडित ने ट्वीट करते हुए
कहा, दिग्गज फिल्मकार बासु चटर्जी के निधन के बारे में आप सभी को बेहद दुख
के साथ सूचित कर रहा हूं। यह फिल्म उद्योग के लिए एक भारी क्षति है। आपकी
याद आएगी सर।
उनके निधन की खबर से बॉलीवुड में शोक की लहर है।
फिल्मकार
सुजॉय घोष ने लिखा, बासु चटर्जी चले गए। मेरे लिए वह कुछ ऐसे चुनिंदा
लोगों में से हैं, जिनकी नजर हमेशा जिंदगी के एक अलग खुशनुमा पहलू पर रही
है। उन्होंने हल्के मिजाज की कई असाधारण फिल्में दी हैं, जिसके चलते वह
हमेशा याद किए जाएंगे। हैशटैगओमशांति।
उन्हें उनकी फिल्मों स्वामी (1978) और दुर्गा (1992) के लिए प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।
साल 1997 में आई फिल्म गुदगुदी उनकी आखिरी फिल्म है, जिसमें अनुपम खेर और प्रतिभा सिन्हा जैसे कलाकार प्रमुख भूमिकाओं में थे।
उनका जन्म 10 जनवरी, 1927 को राजस्थान के अजमेर में हुआ था। आखिरी वक्त में उनकी दो बेटियां उनके साथ थीं। (आईएएनएस)
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