अनशन बार.....बार

अनशन बार.....बार

भ्रष्टाचार सभी देशों में है। कहीं ये कम है कहीं अधिक। भारत में ये अधिकता की हर सीमा से अधिक है। हमारे देश में ठीक ही कहा जाने लगा है कि भ्रष्टाचार लोगों की रग-रग में समा गया है। इस बुराई को दूर करने के लिए कोई भी शासन, तंत्र या व्यवस्था रातोंरात कोई तरीका नहीं ला सकती। समाजसेवी अन्ना हजारे ने इस पर अंकुश के लिए एक बेहतरीन शुरूआत की। उन्हें भरपूर समर्थन हासिल हुआ। उन्होंने सारे देश को इस मसले पर आंदोलित कर दिया।

पिछली बार तेरह दिनों के अनशन में वह सरकार को झुकाने में कामयाब रहे। सरकार ने भी उनकी मुहिम को समझा, तरजीह दी, अन्ना व उनकी टीम के साथ संवाद कायम किया, हालांकि कुछ मतभेद बरकरार रहे व आज भी हैं। टीम अन्ना अपने नजरिये वाले कथित सुदृढ जन लोकपाल को अपनी तरह से परिभाषित करती है। सरकार व अन्य राजनीतिक दल उसमें कई विसंगतियां देखते हैं, उसे अव्यावहारिक मानते हैं।

बहरहाल अब अन्ना हजारे का एक बार फिर उपवास पर बैठना बताता है कि भ्रष्टाचार को समूल उखाडने की उनकी प्रतिबद्धता में करीब एक साल बाद भी कोई कमी नहीं आई है। बल्कि टीम अन्ना के अनशन के पांचवें दिन रविवारीय अवकाश पर जंतर-मंतर पर जुटी भारी भीड ने उन अटकलों को झुठला दिया जिनमें इस आंदोलन के दम तोड देने की बात कही जा रही थी। लेकिन दो दिन पहले टीम अन्ना के समर्थकों ने दिल्ली और चेन्नई में मंत्रियों के घरों के बाहर विरोध प्रदर्शन किए और जताया कि वे सरकार की ढिलाई से नाखुश हैं लेकिन प्रदर्शन के उनके तरीके उचित नहीं कहे जा सकते। प्रधानमंत्री के आवास के बाहर उन्होंने जो भी किया वह तो बिल्कुल ही बचकाना था। यहां ये भी साफ हो गया कि अन्ना व टीम अन्ना की सोच में कहीं दरार तो है।

टीम अन्ना ने सरकार के मंत्रियो पर बिना सोचे-समझे आरोपों की झडी लगा दी। टीम के कई अतिउत्साही सदस्य शायद आंदोलन की सफलता के मद में प्रधानमंत्री आवास की दीवारों पर अनुचित इबारतें लिख आए जिनके लिए अगले दिन अन्ना ने माफी मांगी। टीम के एक सदस्य नवनिर्वाचित राष्ट्रपति के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप जडने पर आमादा रहे। अन्ना ने इसे भी गैरवाजिब करार दिया। फिर टीम के एक सदस्य ने मीडिया को ही कोस डाला व यह भूल गए कि उनके आंदोलन को मीडिया ही नित संजीवनी दे रहा है। इस पर फिर अन्ना व टीम ने अफसोस जताया।

भ्रष्टाचार व काले धन के खिलाफ समानांतर आंदोलन चला रहे बाबा रामदेव के साथ टीम अन्ना के मतभेद भी छिपे नहीं रह सके हैं। जंतर-मंतर पर भीड जुटाने की ताकत का माद्दा दिखाने वाले रामदेव से टीम अन्ना क्षुब्ध दिखी। उसके बाद टीम के एक सदस्य को गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी के साथ बाबा रामदेव की जुगलबंदी अखरी व आलोचना करनी सुहाई। रामदेव ने मोदी को भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेडने वाला महान सिपाही बताया तो टीम अन्ना ने मोदी को मानवता के हत्यारे की संज्ञा दे डाली। भ्रष्टाचार के विरोध की मुहिम चलाने में अन्ना व उनकी टीम की प्रवृत्ति को कुछ लोग तानाशाह भी कहने लगे हैं क्योंकि वे हर बात पर आमरण अनशन के अंतिम हथियार को सबसे पहले आजमाते हैं। टीम अन्ना ईमानदारी को केवल अपना आभूषण मानने लगी है।

लोकपाल कानून के निर्माण में आ रही संसदीय प्रक्रियागत देरी को भी टीम समझना नहीं चाह रही। अब अन्ना की ओर से चुनावों में बेहतर, साफ-सुथरे उम्मीदवारों को समर्थन देने की बात कही गई है जो निश्चित तौर पर उन्हें सियासी दावपेचों में उलझाकर रख देने वाली है। बहरहाल टीम का ये ऎलान राजनीतिज्ञों पर शुचिता व ईमानदारी के लिए दबाव जरूर बनाएगा लेकिन इधर सरकार को भी चाहिए कि वह विपक्ष को साथ ले व देशवासियों की आकांक्षाओं पर खरे उतरने वाले एक सशक्त लोकपाल बिल को जितना जल्दी हो सके, संसद में मंजूरी दिलवाए। ये तो देशहित की बात है।



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