इंडियन स्टूडेंट्स पहली पसंद अमेरिका और ब्रिटेन
अमेरिकन सिस्टम आर्थिक उथलपुथल और 9/11 की घटना के बावजूद अमेरिका अंडरग्रैजुएट स्टूडेंट्स के बीच नंबर वन कंट्री के तौर पर पहचाना जाता है। अमेरिका में शिक्षा हासिल कर रहे विदेशी स्टूडेंट्स में 12 फीसदी भारतीय हैं और इनकी संख्या में साल दर साल लगातार इजाफा हो रहा है। विदेश शिक्षा के लिए आवेदन करने वाले भारतीय स्टूडेंट्स में 60 से 70 फीसदी स्टूडेंट्स अमेरिकी संस्थानों में आवेदन करते हैं। अमेरिकन यूनिवर्सिटीज में मिलने वाली सरल और सहज शिक्षा वहां के एजुकेशनल सिस्टम की सबसे बडी खूबी है, खासकर अंडरग्रैजुएट लेवल के प्रोग्राम्स के लिए। अमेरिकन यूनिवर्सिटीज की ओर से दी जाने वाली इस फ्लेक्सिबिलिटी के पीछे एक अहम कारण है कि हाई स्कूल पास स्टूडेंट जिसकी उम्र महज 16 से 17 साल होती है, अपने करियर का चुनाव साफ तौर पर नहीं कर पाता। भारत में अगर आप इंजिनियरिंग का चुनाव कर लेते हैं और कटऑफ में जगह नहीं बना पाते, तो आपको विषय के बदलाव के लिए एक साल बर्बाद करना होगा। जबकि अमेरिका के मामले में ऎसा नहीं है। मान लीजिए आप इंजिनियरिंग का चुनाव करते हैं और बाद में आपका रूझान फिलॉसपी में हो जाता है, तो बिना समय बर्बाद किए आप उसी समय में फिलॉसफी में ग्रैजुएट हो सकते हैं। याद रहे अमेरिका में यह व्यवस्था केवल अंडरग्रैजुएट लेवल के कोर्स में ही लागू होती है। इसी तरह अगर आप स्ट्रीम्स में रूचि रखते हैं, जैसे इंजिनियरिंग और साइकॉलजी, तो आप एक ही समय में दो डिग्री भी हासिल कर सकते हैं। ऎसा भारत में संभव नहीं है। अमेरिका में स्टडी के दौरान आप ऎसे स्टूडेंट्स के बीच होते हैं, जो अलग- अलग देशों, समुदायों और संस्कृतियों से संबंध रखते हैं। ऎसे में आपको उन उपलब्धियों को जानने समझने का मौका मिलता है।