सख्ती जरूरी, लेकिन ऐसी भी नहीं कि राह भटक जाए बच्चा

सख्ती जरूरी, लेकिन ऐसी भी नहीं कि राह भटक जाए बच्चा

यूं तो व्यक्ति कई तरह के काम दुनिया में आने के बाद करता है। इन कामों में कुछ ऐसे होते हैं जिन्हें करते हुए मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। असंख्य तरीके के कामकाजों में सबसे मुश्किल काम माता-पिता की भूमिका निभाना होता है। यह काम सबसे मुश्किल काम है। सही तरीके से माता-पिता की भूमिका निभा पाना इतना आसान नहीं होता। अपने बच्चों को अच्छी परवरिश देना माता-पिता का दायित्व है, जिससे की वो आगे आने वाली जिंदगी में खुद को एक अच्छा इंसान साबित कर सकें। लेकिन अच्छी परवरिश के चक्कर में कभी-कभी माता-पिता इतने सख्त हो जाते हैं कि उनके बच्चे उनसे दूर होने लगते हैं, वे अपने मन की बात भी अपने अभिभावक से नहीं कर पाते। तब बच्चों के मन में यह बात घर कर जाती है कि उनके माता-पिता ही उनके सबसे बड़े दुश्मन हैं। इसके चलते वे पूरी तरह से माता-पिता की अवहेलना करना शुरू कर देते हैं।

यह बात सही है कि माता-पिता हमेशा अपने बच्चों की भलाई के लिए सब कुछ करते हैं लेकिन उनके प्रति लगातार सख्ती का यह रवैया भी सही नहीं है। 12-13 साल की उम्र तक तो बच्चा माता-पिता की इस सख्ती को सहन करता है लेकिन जैसे ही वह 13वें पड़ाव को पार करता है उसे महसूस होता है कि अब वह कुछ बड़ा हो गया है, अपना अच्छा-बुरा सोच सकता है। बच्चों की परवरिश के दौरान माँ-बाप कुछ ऐसी गलतियाँ कर जाते हैं जिनके चलते बच्चे उनसे दूरी बना लेते हैं। स्थिति यहाँ तक आ जाती है कि साथ में रहते हुए उन्हें एक-दूसरे से परायेपन का अहसास होता है। यह अहसास उनकी जिन्दगी की सोच व समझ को बदलने में अहम् भूमिका निभाता है। आज हम खास खबर डॉट कॉम के पाठकों को ऐसी ही कुछ गलतियों के बारे में बताने जा रहे हैं जो सम्भवत: हर माँ-बाप अपने बच्चों की परवरिश के दौरान करते हैं।

मैं तुम्हारी उम्र में तुमसे अधिक जिम्मेदार था
छोटी छोटी बातों पर आप अपने बच्चों से तुलना कभी न करें क्योंकि बात-बात पर अपने बच्चे की तुलना करना सही नहीं है। इससे उनका आत्मविश्वास कमजोर पड़ सकता है और वो कामयाबी के बजाय पतन की ओर जा सकते हैं। यहाँ तक कि आप उसे उसके सबसे बड़े दुश्मन नजर आने लगेंगे इसलिए ऐसी गलती कभी न करें।

बच्चे तो ऐसे ही होते हैं
ऐसे वाक्यांश का उपयोग करके सभी के सामने उनके दुव्र्यवहार और गुस्से को सही साबित करते हैं, तो आप अपने बच्चों को प्रेरित कर रहे हैं कि वे अपने दुव्र्यवहार को जारी रख सकते हैं और वे गैर जिम्मेदार भी रह सकते हैं।

हम क्षमा चाहते हैं
अपने बच्चे से क्षमा माँगने में कभी संकोच ना करें। कई परिस्थितियों में आप कोई विशेष दिवस या जन्मदिन या स्कूल का कोई कार्यक्रम भूल गये होंगे या आपसे कोई और चूक हुई होगी। ऐसे में अपने बच्चे से क्षमा माँगने में कोई शर्मिंदगी महसूस नही करें।

अपने भाई-बहन जैसे गुणवान बनो
यह वह वाक्य है जिसे हम अक्सर सुनते हैं। माता-पिता बच्चों में छोटी सी कमी को पाते ही यह कहना नहीं भूलते कि तुम अपने भाई-बहन, अपने कजिन या अन्य लडक़ों की तरह क्यों नहीं हो सकते। बार-बार बच्चे की तुलना किसी अन्य के साथ करना सही नहीं है। ऐसा करने से बच्चा अपने ही भाई-बहन या अन्य लोगों को अपना दुश्मन समझना शुरू कर देता है।

आप दूसरों को अपने बच्चे को डाँटने नहीं देते
पहले समय में, शिक्षकों और प्रोफेसरों को छूट होती थी कि वो हमारे बच्चों को उनके अनुचित व्यवहार के लिये गुस्सा करके सिखा सकते थे। आजकल यह लगभग असंभव है क्योंकि अगर एक शिक्षक या एक कर्मचारी आपके बच्चे को कुछ समझाने की कोशिश करता है, तो आप गुस्सा हो जाते हैं। अगर आप ऐसा करते हैं, तो आप अपने बच्चों को ये बता रहे हैं कि वो दुव्र्यवहार कर सकते हैं और न ही आप, न ही शिक्षक, कर्मचारी या कोई भी उन्हें रोकने के लिए कुछ कर सकता है।

हम तुम्हारी बात सुन रहे हैं
सुनना एक कला है और अपने बच्चे की बातें सुनना अत्यावश्यक है। उनकी कहानियाँ, उनकी अभिलाषाएँ, उनके सपनों सुने। स्वयं को हर वक्त अपने काम में इतना व्यस्त न रखें कि बच्चा आपसे अपनी कोई बात कह ही नहीं पाए।

तुम्हारी वजह से शर्मिंदा होना पड़ा
बच्चों के छोटे छोटे कार्य में या पढ़ाई या प्रतियोगिता में जब हार मिलती है तो अक्सर माता-पिता को समाज में इन बातों को लेकर शर्मिंदा होना पड़ता है और माता-पिता अपना सारा ग़ुस्सा बच्चे पर यह कहकर निकालते हैं कि हमें बार-बार सिर्फ तुम्हारी वजह से शर्मिंदा होना पड़ता है। माता-पिता द्वारा बार-बार कहा गया यह वाक्य बच्चे के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाता है और वो अवसाद (डिप्रेशन) का शिकार हो जाता है।

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