मन की आवाज भी सुनें
इन विचारों में सकारात्मकता और नकारात्मकता रहती है और व्यक्ति को दोनों विचारों में से स्वयं के अनुरूप विचारों का चयन करना होता है। इन विचारों का न केवल चयन करना होता है, बल्कि उसका मनन भी करना होता है। कई बार युवा साथी इंटरव्यू के लिए जाते हैं और असफ लता मिलने पर इंटरव्यू लेने वाले पर या कंपनी पर ही आरोप जड देते हैं, जबकि गलती उनकी स्वयं की होती है और वे जानते हैं कि गलती अपनी ही है, पर स्वयं गलती मानने को कौन तैयार होता है। लिहाजा कंपनी ही गलत है, ऎसा प्रचार करते हैं। अगर ध्यान से देखा जाए तो ये तथ्य सामने आता है कि चाहे इंटरव्यू हो या फिर अन्य कार्य हो, आपको स्वयं के आत्मविश्वास व कार्य की सफलता के बारे में पता होता है और ये पता भीतर से ही चलता है। भीतर की आवाज सुनना कोई आध्यात्मिक क्रिया नहीं है, बल्कि ये एक सामान्य प्रक्रिया है और सभी इस तरह से सोचते हैं और भीतर की आवाज सुनते हैं। इसका मतलब ये भी नहीं कि व्यक्ति प्रयत्न ही न करे और असफ लता मिलने की आशा है, इस कारण कोई कार्य ही न करे।