मन की आवाज भी सुनें
कार्य करें और अपनी ओर से पूर्ण मेहनत के साथ करे, पर अगर मन में जरा-सी भी शंका हो तब उस शंका का निवारण जरूरी है, क्योंकि ये मन ही है जो आपको सच से साक्षात्कार करवाता है और सत्य बात आपके सामने बिना लाग लपेट के रखता है। अगर आपने मन के विचारों को मारना आरंभ कर दिया तो सत्य बात आपके सामने नहीं आएगी और स्वयं से ही झूठ बोलने की शुरूआत हो जाएगी। ये स्थिति मनमर्जी की होती है। दरअसल प्रयत्न और भीतर की आवाज सुनने में एक तरह से संतुलन बैठाना होता है और जिसने सही तरीके से संतुलन बिठा लिया, उसकी सफ लता की दर बढने की संभावना रहती है, क्योंकि वो अपनी गलतियों को स्वयं के सामने रखने का माद्दा रखता है।