भगवान को कैसे फूल चढाएं .....

भगवान को कैसे फूल चढाएं .....

भगवान को ताजे, बिना मुरझाए तथा बिना कीडों के खाए हुए फूल डंठलों सहित चढाने चाहिए। फूलों को देव मूर्ति की तरफ करके उन्हें उल्टा अर्नित करे। बेल का पत्ता भी उल्टा अर्पण करे। बेल एवं दूर्वा का अग्रभाग अपनी ओर होना चाहिए। उसे मूर्ति की तरफ न करे।
तुलसीपत्र मंजरी के साथ होना चाहिए। लेकिन निमवत देवताओं के लिए कुछ फूल निषिद्ध माने गए हैं। जिनका विवरण यहां पर प्रस्तुत किया जा रहा है।
शंकर- शंकरजी के लिए केवडा, बकुली एवं कुंद के फूल निषद्ध हैं। कुछ प्रदेशों मे तुलसी भी वर्जित मानी जाती है परंतु इसके लिए कोई शास्त्रधार नहीं हैं। शालिग्राम पर चढाई गई तुलसी शंकरजी को अत्यंत प्रिय है।

गणपति- गणपति को तुलसी के फूल न चढाएं। परंतु गणेश चतुर्थी के दिन सफेद तुलसी अवश्य चढाएं।
पितर - पितर के निमित श्राद्ध के दिन लाल फूल निषिद्ध होते हैं।

दुर्गा देवी - दुर्गा देवी को दूर्वा अर्पित करना मना है तथापि चण्डी होम के लिए दुर्गा आवश्यक मानी जाती है।

विष्णु - विष्णु पूजन में बेल पत्तों का उपयोग नहीं किया जाता। सामान्यतया बासी फूल देवताओं को कभी भी समर्पित नहीं किए जाते। शास्त्रों में प्रत्येक फूल के बासी होने का समय निश्चित किया गया है। इसमे में से तुलसी कभी बासी नहीं होती, वह सदैव ग्राह्य है। बेल 30 दिन, चाफा 9 दिन, मोगरा 4 दिन, कनेर 8 दिन, शमी 6 दिन, केवडा 4 दिन तथा कमल के फूल 8 दिन बाद बासी होते हैं।

खराब, सडे-गले,चोटी पर से उतारे हुए एवं पर्युषित फूल वर्जित माने जाते हैं। लेकिन माली के यहां बचे फूल एवं पत्र कभी बासी नहीं होते। भगवान का निर्माल्य करते समय तर्जनी एवं अंगुष्ठ का उपयोग करें। भगवान को फूल चढाते समय अंगूठा, मध्यमा एवं अनामिका का प्रयोग करना चाहिए। कनिष्ठा का उपयोग कहीं न करे। तुलसी विष्णुप्रिय, दूर्वा गणेश प्रिय एवं बेल शिव प्रिय है।

अमुक भगवान के तिथि एवं वार को ऊपर निर्दिष्ट पेडों की पत्री न तोडें। उदाहरणर्थ,चतुर्थी को दूर्वा,एकादशी को तुलसी तथा प्रदोष के दिन बेल के पत्र आदि नहीं तोडने चाहिए। यदि किसी कारणवश इन दिनाकं पत्री जमा करनी पडें तो उन पेडों से क्षमा मांगकर एवं प्रथना करके तोडें।