फिल्म समीक्षा :

फिल्म समीक्षा : "जन्नत-2"



प्रस्तुत कर्ता : फॉक्स स्टार स्टूडियो
निर्माता :मुकेश भट्ट
निर्देशक : कुणाल देशमुख
गीत : सैय्यद कादरी , संजय मासूम
संगीत : प्रीतम चक्रवर्ती
कलाकार : इमरान हाशमी, ईशा गुप्ता, रणदीप हुड्डा, मनीष चौधरी, आरिफ जकारिया, सुमित
-राजेश कुमार भगताणी


इमरान हाशमी के साथ दर्जन से ज्यादा सफल फिल्में बना चुके मुकेश भट्ट को पहली बार बॉक्स ऑफिस पर आंशिक सफलता मिलेगी। इस सप्ताह प्रदर्शित हुई इमरान हाशमी स्टारर उनकी फिल्म "जन्नत-2" ने हालांकि ओपनिंग अच्छी ली है लेकिन दर्शकों की प्रतिक्रिया मिलीजुली है जिससे बॉक्स ऑफिस पर इसका वीकएंड सीमत रहने की सम्भावना है। हालांकि मुकेश भट्ट अपनी फिल्मों को सीमित बजट में बनाते हैं इसलिए उन्हें नुकसान तो नहीं होगा लेकिन उतना फायदा भी नहीं होगा जितना उन्हें मर्डर-2 से हुआ था। जन्नत-2 को वर्ष 2008 में आई जन्नत का सीक्वल कह कर प्रचारित किया गया है, जबकि यह सीक्वल नहीं बल्कि फ्रेंचाइजी है। इस फिल्म का पिछली फिल्म से कोई लेना देना नहीं है। न कथानक में न किरदारों में और न प्रस्तुतीकरण में।

पिछली जन्नत का हीरो अर्जुन दीक्षित फिल्म के अंत में मारा जाता है। इस फिल्म के नायक सोनू का अर्जुन दीक्षित से कुछ भी लेना देना नहीं है, फिर भी इस फिल्म को पिछली फिल्म का सीक्वल बताया गया। पिछली फिल्म क्रिकेट में मैच फिक्सिंग पर बनी तो यह फिल्म गैरकानूनी तौर से पनपती हथियारों की खरीद फरोख्त पर है। फिल्म की शुरूआत देखकर तो ऎसा महसूस हुआ था कि भट्ट कैम्प से एक बेहतरीन फिल्म निकली है लेकिन मध्यान्तर के बाद फिल्म ने जो अपनी लय खोना शुरू की वह अन्त तक सम्भली ही नहीं और दर्शकों की उम्मीदों पर पूरी तरह से पानी फिर गया।

फिल्म के निर्देशक कुणाल देशमुख बॉक्स ऑफिस पर सफलता के चक्कर में कुछ ऎसे फिसले कि वे सम्भल ही नहीं पाए और एक अच्छी फिल्म बनते रह गई। अच्छी और कसी हुई शुरूआत के बाद फिल्म बिखरने लगती है। ऎसे में फिल्म के हर दूसरे- तीसरे सीन में भद्दी गालियों का प्रयोग कुणाल ने किस मजबूरी में किया समझ से परे लगता है।

फिल्म की कहानी सुनील उर्फ सोनू (इमरान हाशमी) के इर्द गिर्द घूमती है जो खूब दौलत कमाकर अपने ख्वाबों की जन्नत बसाना चाहता है। सोनू स्मार्ट है और सोनू के खास दोस्त बाली ने उसके नाम के साथ केकेसी यानी कुत्ती कमीनी चीज का तमगा लगा रखा है। जल्दी ज्यादा दौलत कमाने के लिए सोनू लोकल हथियारों के गैरकानूनी धंधे से जुड जाता है। सोनू को इससे कुछ लेना- देना नहीं कि इन हथियारों के खरीददार इनका इस्तेमाल कहां और क्यों करेंगे। इसी बीच सोनू की जिन्दगी में जाह्ववी (ईशा गुप्ता) का प्रवेश होता है जो एक छोटे से स्थानीय अस्पताल में डॉक्टर है। जाह्नवी कर्ज में डूबे इस अस्पताल को बचाना चाहती है। जाह्नवी से मिलकर सोनू को लगता है उसे उसके ख्वाबों की जन्नत मिल गई। जाह्नवी का प्यार पाने के लिए सोनू सही रास्ते पर चलने की कोशिश करता है। तभी उसके सामने आता है एसीपी प्रताप रघुवंशी (रणदीप हुड्डा) जो सोनू के अतीत को जानता है। प्रताप जाह्नवी को सोनू की पिछली जिदंगी के बारे में बताने की धमकी देकर सोनू को एक बार फिर हथियारों के धंधे के साथ जुडने को मजबूर करता है ताकि सोनू उसके लिए मुखबिर का काम कर सके। यहीं सोनू का सामना गिरोह के सरगना मंगल सिंह तोमर (मनीष चौधरी) से होता है जो डॉक्टर जाह्नवी का पिता है। कुणाल देशमुख वैसे तो निर्देशक के लिहाज से कहानी को सम्भाल नहीं पाए हैं।

एक मजबूत पटकथा को उन्होंने बॉक्स ऑफिस के चक्कर में बिगाड दिया है। यह समझ से परे है कि उन्होंने इमरान और रणदीप से परदे पर भद्दी गालियां क्यों बुलवाई हैं। इन गालियों की कोई जरूरत नहीं थी। लगातार गालियां दर्शकों के मन में कोफ्त पैदा करती हैं। लेकिन उन्होंने अपने किरदारों से बेहतरीन अभिनय करवाया है। इमरान हाशमी ने एक लम्बा समय फिल्मों में अभिनय करते हुए गुजारा है। उनका अभिनय अपने पूरे निखार पर है।

गत वर्ष द डर्टी पिक्चर के बाद उन्होंने इस फिल्म में कमाल का अभिनय किया है। फिल्म उद्योग का जब भी इतिहास लिखा जाएगा उन्हें जरूर याद किया जाएगा। जिस जोनर के फिल्मों में वे काम करते हैं वहाँ के वे सुपर सितारे हैं। उनका अपना एक दर्शक वर्ग है जो फिल्म को देखता ही देखता है। एसीपी प्रताप रघुवंशी के रोल में रणदीप खूब जमे हैं। मंगल सिंह बने मनीष चैधरी जब भी स्क्रीन पर आए छा गए। फिल्म की नायिका ईशा गुप्ता को कुणाल देशमुख ने विशेष मह�व नहीं दिया है। हीरो के साथ दो तीन गानों और कुछ हॉट सीन्स करने के अलावा उसके हिस्से में कुछ और नहीं आया। प्रीतम चक्रवर्ती का संगीत फिल्म के माहौल पर फिट है। हालांकि फिल्म के गानों में इतना दमखम नहीं कि म्यूजिक लवर्स की जुबां पर आ सकें लेकिन रिलीज से पहले फिल्म के दो गाने तू ही मेरा और तेरा दीदार हुआ कई म्यूजिक चार्ट में टॉप फाइव की लिस्ट में टॉप पर बने हुए हैं। वैसे फिल्म के गीत मुकेश भट्ट की ही फिल्म गैंगस्टर की याद ताजा करते हैं। धुनों को सुनकर ऎसा महसूस होता है जैसे प्रीतम ने पुरानी धुनों को तोड मरोड कर पेश किया है। फिल्म का छायांकन अच्छा है। दिल्ली के चांदनी चौक की तंग गलियों में जिस कुशलता से छायाकार ने अपने कैमरे को घुमाया है वह तारीफ के काबिल है।