जन्मदिन विशेष : फोटोग्राफर बनना चाहते थे प्राण

जन्मदिन विशेष : फोटोग्राफर बनना चाहते थे प्राण

बॉलीवुड में प्राण को उनकी खलनायकी और रौबदार अंदाज के लिए जाना-जाता है। फिल्मों के किरदारों को जीवंत करने में उन्हें महारत हासिल थी, उन्होंने 1940 से 1990 के दशक तक दर्शकों को अपने दमदार अभिनय का मुरीद बना दिया। प्राण का पूरा नाम प्राण कृष्ण सिकंद था और उनका जन्म 12 फरवरी, 1920 को पुरानी दिल्ली के बल्लीमारान इलाके में एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। प्राण के पिता लाला कृष्ण सिकंद एक सरकारी ठेकेदार थे, जो आमतौर पर स़डक और पुल का निर्माण करते थे। प्राण की शिक्षा कपूरथला, उन्नाव, मेरठ, देहरादून और रामपुर में हुई। प्राण बचपन से ही पढ़ाई में काफी होशियार थे। दर्शकों के बीच दमदार अभिनय की छाप छो़डने वाले प्राण के बारे में बहुत कम लोगों को पता है कि वह अभिनेता नहीं, बल्कि एक फोटोग्राफर बनना चाहते थे, लेकिन भाग्य ने उनके लिए कुछ और ही सोच रखा था। प्राण की फिल्मों में आने की कोई योजना नहीं थी। हुआ यूं कि एक बार लेखक मोहम्मद वली ने प्राण को एक पान की दुकान पर ख़डे देखा, उस समय वह पंजाबी फिल्म "यमला जट" के निर्माण की योजना बना रहे थे।

पहली ही नजर में वली ने यह तय कर लिया कि वह अपनी इस फिल्म में प्राण को लेंगे, फिर क्या था... उन्होंने प्राण को फिल्म के लिए राजी कर लिया। फिल्म "यमला जट" 1940 में प्रदर्शित हुई और काफी हिट भी रही और इसके बाद तो प्राण ने फिर कभी पलटकर नहीं देखा। प्राण ने 1948 से 2007 तक सहायक अभिनेता के तौर पर काम किया, वह बॉलीवुड के ऎसे अभिनेता हैं, जिन्हें मुख्यत: खलनायक की भूमिका के लिए जाना जाता है। प्राण ने शुरूआत में 1940 से 1947 तक नायक के रूप में फिल्मों में अभिनय किया। इसके अलावा खलनायक की भूमिका 1942 से 1991 तक जारी रखी। इसके बाद प्राण ने कई और पंजाबी फिल्मों में काम किया और लाहौर फिल्म जगत में सफल खलनायक के रूप में स्थापित हो गए।

लाहौर फिल्म उद्योग में एक नकारात्मक अभिनेता की छवि बनाने में कामयाब हो चुके प्राण को हिंदी फिल्मों में पहला ब्रेक 1942 में फिल्म "खानदान" से मिला। इस फिल्म की नायिका नूरजहां थीं। देश के बंटवारे के बाद प्राण ने लाहौर छो़ड दिया और मुंबई आ गए। लाहौर में प्राण तब तक फिल्म जगत का एक प्रतिष्ठित नाम बन चुके थे और नामचीन खलनायकों में शुमार हो गए थे, लेकिन हिंदी फिल्म जगत में उनकी शुरूआत आसान नहीं रही। मुंबई में उन्हें भी किसी नवोदित कलाकार की तरह ही संघर्ष करना प़डा।

प्राण ने 18 अप्रैल 1945 को शुक्ला आहलुवालिया से शादी की। उनके तीन बच्चे हैं। दो ल़डके अरविंद व सुनील और एक ल़डकी पिंकी है, जिनके साथ वह मुंबई आए। आज की तारीख में उनके परिवार में 5 पोते-पोतियां और 2 प़डपोते भी हैं। खेलों के प्रति प्राण का प्रेम सभी को पता है। 50 के दशक में उनकी अपनी फुटबॉल टीम "डायनॉमोस फुटबॉल क्लब" काफी लोकप्रिय रही है।