शख्सियत शानदार : नोटबंदी, जीएसटी का फैसला, विपक्ष की करते थे बोलती बंद, अरुण जेटली रहे दमदार
नई दिल्ली । चतुर राजनीतिज्ञ, नामी वकील और मोदी सरकार के संकटमोचक। जिसके
भाषण की कला के विपक्षी भी फैन थे, उस शख्सियत का नाम है अरुण जेटली।
उन्होंने एक बार संसद के बजट सत्र में कहा था, इस मोड़ पर ना घबराकर थम
जाइए आप, जो बात नई है उसे अपनाइए आप, डरते हैं नई राह पर चलने से क्यों,
हम आगे-आगे चलते हैं आइए आप।देश के पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली का ये
शायराना अंदाज काफी सुर्खियों में रहा था।
भाजपा के वरिष्ठ नेता
अरुण जेटली एक तेज तर्रार वकील के तौर पर पहचाने जाते थे। वकालत की ये
खासियत उनमें उनके पिता महाराज किशन जेटली से विरासत में मिली। उन्होंने
हमेशा सदन में अपनी पार्टी का पक्ष मजबूती के साथ रखा और इतना ही नहीं अपने
तर्कों से विपक्षियों को निरुत्तर कर दिया। भले ही उनका चुनाव जीतने में
रिकॉर्ड उतना बेहतर नहीं रहा हो। लेकिन, लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता कम
नहीं थी। अरुण जेटली राज्यसभा के सदस्य के तौर पर सांसद रहे और उन्हें
भारतीय जनता पार्टी में क्राइसिस मैनेजर के तौर पर भी जाना जाता था। संसद
में अपने सहयोगी पार्टियों को मनाना हो या फिर किसी संसदीय संकट में पार्टी
का बचाव करना हो, वो हमेशा कामयाब मैनेजर के तौर पर उभरे। भाजपा के अच्छे
दिन रहें हो या बुरे उन्होंने पार्टी को हर हाल में बेहतर बनाने का प्रयास
किया।
अरुण जेटली का जन्म 28 दिसंबर 1952 को दिल्ली में एक पंजाबी
हिंदू ब्राह्मण परिवार में हुआ था। 1977 में उन्होंने यूनिवर्सिटी के
फैकल्टी ऑफ लॉ से एलएलबी की पढ़ाई की। वो पहले दिल्ली हाईकोर्ट और बाद में
सुप्रीम कोर्ट के भी वरिष्ठ वकील रहे। अरुण जेटली के बारे में कहा जाता था
कि उनके दफ्तर में दो कोट टंगे होते थे, एक वकील तो दूसरा प्रवक्ता का।
वकालत की पढ़ाई के दौरान 1973 में वो जय प्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति
आंदोलन से जुड़े थे। जय प्रकाश नारायण ने अधिक से अधिक छात्रों को आंदोलन
में जोड़ने के लिए राष्ट्रीय समिति बनाई। जिसका संयोजक अरुण जेटली को
बनाया।
जेटली आपातकाल के वक्त 19 महीने जेल में रहे और 1974 में
दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष भी रहे। इसके बाद उन्होंने जनसंघ
में शामिल होकर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। 1977 में जब जनता
पार्टी की सरकार बनी, तो जनता पार्टी की कार्यकारिणी में शामिल हुए। तब
जेटली की उम्र सिर्फ 24 साल थी। 1989 में उन्हें वीपी सिंह सरकार के समय
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया गया था। उनका काम भाजपा और वीपी सरकार
को जोड़ने वाली कड़ी के रूप में था।
साल 1991 में अरुण जेटली भारतीय
जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बने। 1999 के
लोकसभा चुनाव से पहले वह भाजपा के सबसे प्रभावशाली प्रवक्ता बने। 1999 में
अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में उन्हें सूचना और
प्रसारण राज्यमंत्री नियुक्त किया गया। वहीं प्रतिष्ठित वकील रहे राम
जेठमालानी के इस्तीफे के बाद 23 जुलाई 2000 को अरुण जेटली को कानून और
कंपनी मामलों के मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार दिया गया। 2004 के लोकसभा
चुनाव में एनडीए की हार के बाद उन्होंने फिर से वकालत का रुख किया। मगर साल
2009 में राज्यसभा में विरोधी दल के नेता के तौर पर उनकी लोकप्रियता का
ग्राफ काफी तेजी से बढ़ा।
2014 में मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में
अरुण जेटली को वित्त मंत्री का जिम्मा सौंपा गया। वित्त मंत्री रहते हुए
उन्होंने देश में जीएसटी और नोटबंदी जैसे चर्चित फैसले लिए थे। जीएसटी के
लिए राज्यों के बीच आम सहमति बनाने का क्रेडिट भी अरुण जेटली को ही दिया
जाता है। 2019 के लोकसभा चुनाव में फिर मोदी सरकार को प्रचंड बहुमत मिला।
लेकिन, दूसरे कार्यकाल में उन्होंने खुद ही खराब सेहत का हवाला देते हुए
मंत्री पद लेने से इनकार कर दिया था। उनका ये फैसला सुनकर हर कोई अंचभित
था।
23 अगस्त 2019 में तक उनकी तबीयत बिगड़ गई और 24 अगस्त 2019 को 66 साल की उम्र में जेटली ने इस दुनिया से अलविदा कह दिया।
--आईएएनएस
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