मंै शायद कभी भी स्कूल न जा सकूंगी

मंै शायद कभी भी स्कूल न जा सकूंगी

इस्लामाबाद। मलाला यूसुफजई पाकिस्तान में ल़डकियों की शिक्षा के लिए अभियान चला रही है। जब वो महज 11 साल की थी उसने तालिबान के जुल्मों पर एक डायरी लिखी थी। मलाला के सिर में लगी गोली को निकाल लिया गया है और अब उसकी हालत स्थिर है।

पाकिस्तान की स्वात घाटी की रहने वाली मलाला यूसुफ़ज़ई महज़ 11 साल की थीं जब वहां तालिबान के शासन के तहत लडकियों के स्कूल बंद कर दिए गए। उस वक्त मलाला सातवीं कक्षा में पढ़ती थी और तब उन्होंने गुल मकई के नाम से डायरी लिखनी शुरू की।

इसमें उन्होंने लिखा कि किस तरह से तालिबान के प्रतिबंधों ने उनकी क्लास में पढने वाली लडकियों की जि़ंदगी पर असर डाला। उन्होंने वर्ष 2009 में लिखा था कि क्योंकि आज स्कूल का आखिरी दिन है इसलिए मैंने और मेरी सहेलियों ने कुछ और देर खेलने का फ़ैसला किया।

मुझे यकीन है कि एक दिन स्कूल फिर खुलेगा लेकिन घर वापिस जाते समय मैं स्कूल की इमारत ऎसे देख रही थी कि शायद मैं यहां फिर कभी न आ पाऊं।



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