हर रिश्ता मांगता है रिस्पेक्ट

हर रिश्ता मांगता है रिस्पेक्ट

बदलते परिवेश में रिश्तों की परिभाषा जरूर बदलती है पर रिश्तों की अहमियत आज भी उतनी ही है जितनी पहले हुआ करती थी। हर स्थिति में अपने हर रिश्ते को सदाबहार बनाए रखने का एक ही मंत्र है। उस रिश्ते को समुचित रिस्पेक्ट देना। हमारा समाज विभिन्न रिश्तों की मधुर डोर में बंधा है। हर रिश्ते का अपना एक अलग और महत्वपूर्ण स्थान है। हर रिश्ते में स्नेह, समर्पण और आदर ये तीन तत्व जरूर होने चाहिए क्योंकि ये विपरीत विचारधारा वाले लोगों को भी एक अटूट बंधन में बांधने का सामथ्र्य रखते हैं। कुछ रिश्ते बेहद नाजुक और संवेदनशील होते हैं, इसलिए उन्हें बेहद सावधानी से संभालना भी पडता है।
अगर रिश्तों मे रिस्पेक्ट यानी उचित आदर की भावना हो तो यह काम काफी आसान हो जाता है क्योकि एक-दूसरे के प्रति आदर की भावना ही रिश्ते की जडों को सींचकर उसे सबल, समर्थ और संवेदनशील रूप प्रदान करती है। यह याद रखना भी जरूरी है कि हर रिश्ते की एक मर्यादा और सीमा होती है और हर रिश्ते में थोडी स्वतंत्रता भी निहायत जरूरी है। इस सीमा और स्वतंत्रता की पहचान हम तभी कर सकेंगे, जब रिश्तों के प्रति समुचित आदर भाव रखेंगे।
रिश्तों की शुरूआत
सामाजिक रिश्तों की शुरूआत मां और शिशु के रिश्ते से होती है। मां और बच्चे का रिश्ता इस संसार में सबसे सुंदर और भावनात्मक होता है। सही मायने में हर बच्चा रिश्तों में आदर की शुरूआत इसी महत्वपूर्ण रिश्ते से करता है। मां ही उसे हर रिश्ते का एहसास कराती है। मां के व्यवहार और पिता की बातों का अनुसरण करते हुए ही एक बच्चा समाज और रिश्तों की महत्ता धीरे-धीरे समझता चला जाता है। फिर जिंदगी में आगे बढते हुए बहुत से नए रिश्ते जुडते चले जाते हैं जिनमें कुछ हमें पसंद होते हैं, कुछ नापसंद, रिश्ता चाहे कोई भी हो, अगर रिश्ते में परस्पर आदर भाव हो तो उसे सहेजना इतना मुश्किल नहीं होता।
दोस्ती का रिश्ता
पति-पत्नी का रिश्ता जन्म-जन्मांतर का माना जाता है। इस रिश्ते में परस्पर विश्वास और आदर की भावना ही एक-दूसरे के लिए स्नेह व समर्पण का बीज बनती है जिससे दाम्पत्य रूपी वटवृक्ष फलता-फूलता है। ननद भाभी का मोहक रिश्ता हो या देवरानी-जेठानी का सौहार्दपूर्ण रिश्ता, हर रिश्ते की नींव आदर के जल से रिक्त होने पर ही सुदृढ परिवार का बल बनती है। वस्तुत:सामाजिक चेतना तभी होगी जब आदर बढेगा। विचारों के आदान-प्रदान से मतभेद संभव है पर सम्मान की भावना हो, तो किसी भी रिश्ते में दरार नहीं पडती और रिश्तों की महक से घर आंगन महक उठता है।
बुजुर्गो से संबंधों का समीकरण
आदर की कमी के कारण ही अपनों के बीच बुजुर्ग अधिकतर खोते जा रहे हैं। आज की पीढी ग्लैमर और भौतिक सुख के पीछे अंधी हो रही है। उसका बुजुर्गो के साथ समन्वय नहीं हो पाता। निरंतर एक अनजानी दौड में रत होकर यह पीढी तालमेल खोती जा रही है। आदर सम्मान देना उसके लिए अब बीते कल की बात हो गई है। यदि नई पीढी पुरानी पीढी को सम्मान नहीं दे पा रही है, तो उनके अधिकारों का क्या ख्याल रख पाएगीक् आज जगह-जगह खुलते जा रहे वृद्धाश्रम, ओल्ड एज होम्स इस तथ्य की गवाही दे रहे हैं। आज परिवार का अर्थ केवल पति-पत्नी और बच्चे मात्र रह गए हैं।
गुण-दोषों को अपनाएं
आदर शब्द में एक गूढ अर्थ निहित है, रिश्तों को उसके गुण-दोषों के साथ अपनाने का भाव छिपा है। गुणों को प्रशंसात्मक दृष्टि से देखना और दोषों को दूर करने का प्रयास करना ही आदर है। संसार में ऎसा कौन-सा व्यक्ति है, जो सम्मान का उत्तर नकारात्मक दृष्टिकोण से देगाक् आदर देने पर आदर ही प्राप्त होता है। बच्चे माता-पिता का आदर करें तो माता-पिता को भी बच्चों की भावनाओं का आदर करना चाहिए। पति-पत्नी की भावनाओं को सम्मान देगा तो पत्नी भी पति को परिवार सहित आदर-भाव अवश्य देगी।
अपेक्षाएं न रखें
हर रिश्ता प्यार के कोमल एहसास से बंधा होता है, इसलिए हर रिश्ते का आदर करना हमारा कर्तव्य है। रिश्ते में आदर तभी पनपेगा, जब हम एक-दूसरे को समझना चाहेंगे, उसके गुण दोषों को आत्मसात करना चाहेंगे। स्वयं पर यह विश्वास रखेंगे कि हमारी संस्कृति में संस्कारों का भी महत्व है और हमारे संस्कार यही शिक्षा देते हैं कि हर व्यक्ति की एक क्षमता होती है, इसलिए किसी से ज्यादा अपेक्षाएं रखना अच्छी बात नहीं।
अपशब्दों से बचें
सम्मान की भावना "सम्बोधन" और "शब्दों" के माध्यम से प्रसारित होती है, किसी भी रिश्ते में अपशब्दों के प्रयोग से हमेशा बचना चाहिए। रिश्तों में आदर सूचक संबोधन जरूरी है।