चंबल रिवर फ्रंट में नहीं ली एन्वायरमेंट क्लीयरेंस, सीएम गहलोत भी अब उदघाटन नहीं करेंगे

चंबल रिवर फ्रंट में नहीं ली एन्वायरमेंट क्लीयरेंस, सीएम गहलोत भी अब उदघाटन नहीं करेंगे

कोटा (ब्यूरो)। चंबल नदी किनारे यूआईटी के 1400 करोड़ रुपए से बनाए गए चंबल रिवर फ्रंट के मंगलवार के उदघाटन कार्यक्रम में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत नहीं जाएंगे। देर रात सोशल मीडिया के जरिए खुद सीएम ने यह जानकारी सांझा की। लेकिन, बुधवार को उनके अन्य कार्यक्रम यथावत रहेंगे।
मुख्यमंत्री गहलोत ने सोशल मीडिया में जारी बयान में मंगलवार का दौरा स्थगित करने का स्पष्ट कारण नहीं बताया है। लेकिन, विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि कोटा रिवर फ्रंट में एन्वायरमेंट क्लीयरेंस नहीं होने, घड़ियाल सेंचुरी, हाईकोर्ट के अब्दुल रहमान बनाम राज्य सरकार के फैसले और वन कानूनों का उल्लंघन होने की वजह से सीएम गहलोत ने उदघाटन कार्यक्रम टाला है।
बता दें कि खासखबर डॉट कॉम ने शनिवार को नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल और आर्किटेक्ट अनूप बरतरिया की प्रेस कांफ्रेंस में भी यही आशंका जाहिर की थी। इससे पहले खबरों में भी बताया था कि कोटा रिवर फ्रंट में वन एवं पर्यावरण नियमों को ताक में रखा गया है। इसके बाद सोमवार को ही कोटा से भाजपा के पूर्व विधायक प्रहलाद गुंजल ने भी प्रेस कांफ्रेंस करके इसी तरह के आरोप लगाए थे।
स्थानीय पूर्व विधायक प्रहलाद गुंजल का आरोप है कि यह नगरीय विकास, आवासन एवं स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल और आर्किटेक्ट अनूप बरतरिया के भ्रष्टाचार की नींव है। इन्होंने कोटा के 50 साल के भविष्य को दांव पर लगा दिया है। ये नदी राजस्व रिकॉर्ड में गैर मुमकिन नदी है, जो कि घडियाल अभियारण के अंदर आती है।
उल्लेखनीय है कि सीएम अशोक गहलोत जिस सिटी पार्क का उदघाटन करने जा रहे हैं, उसमें भी 200 बर्षों पुराने काफी पेड़ काटे गए हैं। पहले यहां सेंकड़ों की संख्या मे मोर थे। राज्य सरकार द्वारा सिटी पार्क के लिए जारी अनुमति में मोरों के संरक्षण की जिम्मेदारी वन पक्षी अधिनियम की पालना करते हुए नगर विकास न्यास पर डाली थी। नगर विकास न्यास ने इसकी अनुमति नहीं ली। अब सब मोर या तो मर चुके हैं या इनका रिकॉर्ड न्यास के पास उपलब्ध है अथवा नहीं, इसकी कोई जानकारी वह देने को तैयार नहीं है। इससे भी पर्यावरण प्रेमी नाराज हैं। सिटी पार्क मैं बनाया गया बर्ड आइवरी स्ट्रक्चर भी वन अधिनियम के विरुद्ध बताया जा रहा है।
इनसाइड स्टोरीः सीएम ने इसलिए कैंसल किया प्रोग्राम
सूत्रों के मुताबिक कोटा रिवर फ्रंट मामले में पूर्व भाजपा विधायक प्रहलाद गुंजल की प्रेस कांफ्रेंस के बाद सरकार और सीएमओ में हड़कंप मचा। पूरे मामले की पड़ताल की गई तो पता चला कि इसमें एन्वायरमेंटल क्लीयरेंस नहीं ली गई है। वन एवं पर्यावरण विभाग, नगरीय विकास विभाग समेत तमाम अफसरों को मुख्यमंत्री निवास पर तलब किया गया।
पर्यावरण एक्सपर्ट्स भी राय ली गई। सभी की राय के बाद तय हुआ कि सीएम गहलोत को इस विवादित प्रोजेक्ट का हिस्सा नहीं बनना चाहिए। कोर्ट केस होता है तो धारीवाल और अनूप बरतिया भुगतें। इसके बाद रात 2.30 बजे सीएम की ओर से सोशल मीडिया में ऐसा बयान जारी किया गया कि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे। यानि धारीवाल नाराज ना हों, इसलिए पूरे प्रोजेक्ट की तारीफ करते हुए बधाई दे दी और अपरिहार्य कारण बताकर खुद का दौरा भी टाल दिया।
एनजीटी अजमेर की आना सागर झील के 7 वंडर्स को तोड़ने का दे चुका आदेशः उल्लेखनीय है कि अजमेर की आना सागर झील पर बने 7 वंडर्स में भी इसी तरह के उल्लंघन होने के कारण पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) 7 वंडर्स को तोड़ने का आदेश दे चुकी है। क्योंकि के नदी के बफर जोन यानि ओपन स्पेस में बनाए गए हैं। कोटा रिवर फ्रंट भी चंबल घड़ियाल सेंचुरी और नदी के ओपन स्पेस में बना है।
वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने अफसरों पर कार्रवाई करने को कहा थाः
नदी का बहाव क्षेत्र कम करने के साथ ही इसके लिए जरूरी पर्यावरण स्वीकृति भी नहीं ली गई है। इसके लिए केंद्र सरकार के वन, पर्य़ावरण एवं क्लाइमेट चेंज मंत्रालय ने 1 जुलाई, 2023 को राज्य सरकार को लिखे पत्र में चंबल घड़ियाल सेंचुरी और वन पर्य़ावरण एवं वाइल्ड लाइफ एरिया अभी अधिसूचित होने की प्रक्रिया में है, इसलिए SC-NBWL से बिना अनुमति कोई भी कार्य सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का स्पष्ट उल्लंघन माना जाएगा। इसलिए इसे नियमों का उल्लंघन मानते हुए तुरंत काम रोकने औऱ संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई करने को कहा था।
रिवर फ्रंट को एनजीटी में ले जाने की तैयारीः इधर, कुछ पर्यावरण प्रेमियों ने अजमेर की आना सागर झील की तर्ज पर कोटा रिवर फ्रंट मामले को भी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में ले जाने की तैयारी कर ली है। इन लोगों का कहना है कि यहां नदी किनारे करीब 1 लाख वर्गफीट का निर्माण हुआ है। इसके लिए बहुत जरूरी एन्वायरमेंटल क्लीयरेंस भी नहीं ली गई है। इससे जलीय जीव घड़ियालों के अस्तित्व को खतरा होने के साथ ही नदी का बहाव क्षेत्र भी कम कर दिया गया है। इसलिए इन्हें तोड़ा जाना चाहिए।ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे

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