कैप्सटन मीटर्स जमीन मामलाः प्राइवेट वकील की राय लेकर भू-घोटाले पर पर्दा डालने में जुटा जेडीए
जयपुर (ब्यूरो)। कहते हैं जब लक्ष्मी बरसती है तो ऐसे बरसती है कि
कानून, नियम, आदेश सब अपने पक्ष में धुन बजाने लगते हैं। जी हां, जेएलएन
मार्ग स्थित 200 फीट मार्ग पर राज्य सरकार द्वारा औद्योगिक परियोजनार्थ
अवाप्तशुदा भूमि पर बिना भूमि स्वामित्व की जांच किए आनन-फानन में जेडीए ने
पट्टा और भवन मानचित्र अनुमोदित कर दिया। लेकिन, जेडीए के ही निदेशक
(विधि) ने जब इस प्याज के छिलके की तरह इस घोटाले की परतें खोलीं तो जेडीए
से लेकर सरकार में बैठे अफसरों की नींद उड़ गई। क्योंकि कई अफसरों ने खुद
भी इस जमीन पर अवैध रूप से बने ज्वैल ऑफ इंडिया प्रोजेक्ट में फ्लैट लिए
हुए हैं। इसलिए अब जेडीए प्राइवेट वकील की ओपिनियन लेकर इस भू-घोटाले पर
पर्दा डालने में जुट गया है। जबकि सभी जानते हैं कि ऐसे मामलों में
प्राइवेट वकील की विधिक राय की कोई अहमियत नहीं है। अगर जेडीए को कानूनी
राय ही लेनी थी तो महाधिवक्ता अथवा अतिरिक्त महाधिवक्ता की ऑफिशियल कानूनी
राय लेनी चाहिए थी।
उल्लेखनीय है कि जेडीए में निदेशक पद पर
जिला एवं सैशन न्यायाधीश स्तर के अधिकारी ही निदेशक विधि लगते हैं। निदेशक
(विधि) ने जब फाइल पर जेडीए अफसरों के घोटालों को लेकर टिप्पणियां अंकित की
और पूरे मामलों की सीबीआई, एसीबी और ईडी जैसी एजेंसियों से जांच कराए जाने
की विधिक सिफारिश की तो अफसरों से लेकर मंत्री शांति धारीवाल तक की चूलें
हिल गईं। नतीजा यह हुआ कि अल्प समय में ही निदेशक (विधि) का जेडीए से
ट्रांसफर हो गया।
संभवतः निदेशक (विधि) दिनेश कुमार गुप्ता जेडीए
में सबसे कम समय पदस्थापित रहने वाले अधिकारी होंगे। गुप्ता ने कैप्सटन
मीटर्स प्रा. लि., जय ड्रिंक्स प्रा. लि. के जमीन मामले में 472 करोड़ रुपए
का घोटाला बताया था। लेकिन, वास्तव में यह 3500 करोड़ रुपए से भी अधिक
राशि का घोटाला है। खासखबर डॉट कॉम लगातार इस घोटाले की परतें खोलता रहा
है।
बताया जा रहा है कि इस मामले में निदेशक (विधि) की टिप्पणी
जो कि फाइलों की गहन पड़ताल के बाद साक्ष्यों पर आधारित थी, पर प्राइवेट
वकील ने स्पष्ट ओपिनियन देने के बजाय गोलमोल राय दी है। इसमें कहा गया है
कि अगर मौजूदा नियम इस प्रकरण में लागू होते हैं तो भू- उपयोग परिवर्तन की
कार्यवाही की जा सकती है। एक्सपर्ट का मानना है कि इसका मतलब तो यह हुआ
कि पूर्व के समस्त ऐसे प्रकरण जिनमें कानून सम्मत अधिसूचना के तहत भू-
उपयोग नियमों की पालना करनी अनिवार्य थी, का अब कोई मतलब नहीं है। नए नियम
जो सुबह से लेकर शाम तक दिन में 3 बार बदल जाते हैं, के तहत भू-उपयोग
परिवर्तन और राजकीय भूमि को निजी भूमि में बदलने की कार्यवाही की जा सकती
है।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक जेडीए को अब यह देखना है कि
प्राइवेट वकील की यह टिप्पणी प्रकरण विशेष के लिए लागू है या जेडीए ऐसे
अन्य सभी समान प्रकरणों में भी इसे लागू करेगा। क्योंकि क्योंकि प्राधिकरण
क्षेत्र में औद्योगिक भूमि जो मास्टर प्लान में अब रिहायशी एवं व्यावसायिक
है। अवाप्तशुदा भी है और 5000 से ज्यादा परिवार आज भी पट्टे की बाट जोह रहे
हैं। लेकिन, ऐसा शायद संभव नहीं है क्योंकि ये परिवार जेडीए अफसरों को
मोटा पैसा नहीं बांट पाएंगे।
दरअसल, ज्वैल ऑफ इंडिया प्रकरण में जब
धारा 48 के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग कर इस भूमि को अवाप्ति से सशर्त
मुक्त किया था तब यह मुख्य शर्त थी कि इस जमीन का भू-उपयोग परिवर्तन किसी
भी स्थिति में नहीं किया जा सकेगा। लेकिन, जेडीए अधिकारियों ने लीजशुदा
सरकारी जमीन का अप्रत्यक्ष रूप से निजी व्यावसायिक कम आवासीय परियोजनार्थ
बिना भू-स्वामित्व की जांच किए, पट्टा जारी कर दिया। यही बिंदु एसीबी,
सीबीआई और ईडी से जांच कराने का विषय है।
अब सवाल यह है कि
क्या जेडीए इतने महत्वपूर्ण जमीन प्रकरण जो कि 3500 करोड़ रुपए से भी अधिक
का मामला है, को केवल एक प्राइवेट वकील की विधिक राय से सहमत होकर भू-
उपयोग परिवर्तन और इसका स्वामित्व निजी कंपनी कैप्सटन मीटर्स प्रा. लि. जय
ड्रिंक्स प्रा. लि. ज्वैल ऑफ इंडिया को सौंप देगा। वैसे इस मामले को लेकर
हाईकोर्ट में पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन (जनहित याचिका) दर्ज हो चुकी है।
जिसकी सुनवाई इसी सप्ताह होने की संभावना है। इधर, कुछ सूत्र दावा कर रहे
हैं कि मोटा चुनावी चंदा मिलने की वजह से वर्तमान सरकार इस प्रकऱण पर पर्दा
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