क्या हैं शादी की पाठशाला

क्या हैं शादी की पाठशाला

जिम्मेदारियां बांटें
कई बार बहू पर सारी जिम्मेदारी डाल दी जाती है। ऐसा उन परिवारों में होता है, जहां मां की मृत्यु के बाद घर संभालने के लिए बहू लायी जाती है। यह बात बहू पर भी निर्भर करती है कि वह जिम्मेदारियों का सारा बोझ ढोने के बजाय उनका बंटवारा करे। घर में किसी बडे व्यक्ति या पति से मदद ले कर धीरे-धीरे जिम्मेदारियां उठाना सीखे। जिम्मेदारियां उठाने वाले इंसान को सराहा जाना जरूरी है। इससे उसको सहारा मिलता है और उसका हौसला बुलंद होता है।

ऐसे परिवार में जहां बहू को सराहना नहीं मिलती और जरा सी गलती होने पर आसमान सिर पर उठा लिया जाता है, वहां काम करने वाले का मन हटता जाता है। ऐसा होने पर बहू परिवार में जिससे उसकी निकटता बन गयी हो, उसके माध्यम से या पति के माध्यम से जो बाकी सदस्यों से बरताव चाहती है, उन तक बात को पहुंचाए। पति से खुल कर बोले कि मैं इतना प्रयास करती हूं, आप दो शब्द सराहना के बोलेंगे, तो मुझे अच्छा लगेगा। मन की बात सीधे तरीके से बोलना बहुत जरूरी है।

दूसरों की जो बातें दिल को लगती हैं, उन्हें खुलकर बोल दें। अपनी बात कहना भी जरूरी होता है, पर हर समय जवाब-तलब के लिए कमर कसे रहने में भी कोई समझदारी नहीं है, क्योंकि तब लोग आपको गंभीरता से नहीं लेते हैं। आपकी बात का वजन कम होता है। अपनी बात इस तरह रखें कि उनको अपनी गलती का अहसास होने के साथ लगे कि आप गलत बात पर चुप रहने वाली नहीं है। नए जमाने की लडकी से इतने खुलेपन की उम्मीद तो नए जमाने के सास-ससुर व परिवार वाले रखते ही हैं।

#ये बातें भूल कर भी न बताएं गर्लफ्रेंड को...



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