क्या है सोलह संस्कार और क्यों सब के लिए है आवश्यक

क्या है सोलह संस्कार और क्यों सब के लिए है आवश्यक

संस्कृत भाषा का शब्द है संस्कार। मन, वचन, कर्म और शरीर को पवित्र करना ही संस्कार है। हमारी सारी प्रवृतियों और चित्तवृत्तियों का संप्रेरक हमारे मन में पलने वाला संस्कार होता है। संस्कार से ही हमारा सामाजिक और आध्यात्मिक जीवन पुष्ट होता है और हम सभ्य कहलाते हैं। व्यक्तित्व निर्माण में हिन्दू संस्कारों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। संस्कार विरूद्ध आचरण असभ्यता की निशानी है। संस्कार मनुष्य को पाप और अज्ञान से दूर रखकर आचार-विचार और ज्ञान-विज्ञान से संयुक्त करते हैं। मुख्यत: तीन भागों में विभाजित संस्कारों को क्रमबद्ध सोलह संस्कार में विभाजित किया जा सकता है।
ये तीन प्रकार होते हैं.........................
(1) मलापनयन -उदाहरणार्थ किसी दर्पण आदि पर पडी हुए धूल, मल या गंदगी को पोंछना, हटाना या स्वच्छ करना मलापनयन कहलाता है।
(2) अतिशयाधान- किसी रंग या पदार्थ द्वारा उसी दर्पण को विशेष रूप से प्रकाशमय बनाना या चमकाना अतिशयाधान" कहलाता है। दूसरे शब्दों में इसे भावना, प्रतियत्न या गुणाधान-संस्कार भी कहा जाता है।