जानिए स्वाइन फ्लू से बचाव के प्रमाण-आधारित आयुर्वेदिक सूत्र
स्वाइन फ्लू से बचाव का चौथा कदम, आयुर्वेदाचार्यों की सलाह से, आहार,
रसायन और औषधि के सम्यक प्रयोग पर है। आहार ऐसा
हो जिससे जठराग्नि सदैव सम रहे एवं व्याधिक्षमत्व बढ़ा रहे। आधुनिक वैज्ञानिक
संदर्भ में कहें तो ऐसा आहार जो ऑक्सीडेंटिव स्ट्रेस लोड को कम से कम बढ़ाये,
वही व्याधिक्षमत्व बढ़ा सकता है।
स्वाइन फ्लू से बचाव का पाँचवां सुझाव यह
है कि सद्वृत्त और आचार रसायन का निरंतर पालन किया जाये। विशेषकर स्नान, मलमार्गों व हाथ की सफाई, संक्रमित
वस्तुओं, व्यक्तियों व स्थलों से सुरक्षित दूरी
रखना, जम्हाई, छींक
व खाँसी के समय मुंह ढकना, नासिका-द्वारों को
कुरेदना से बचाना, सोने, जागने,
मदिरापान, भोजन
आदि में अतिवादी नहीं होना, स्नान के बाद पुनः
पूर्व में पहने हुये कपड़े नहीं पहनना, हाथ, पैर व मुंह धोये बिना भोजन नहीं करना, गंदे
या संक्रमित बर्तनों में भोजन नहीं करना, संक्रमित
व्यक्तियों द्वारा लाया हुआ भोजन नहीं करना चाहिये।
आखिरी में एक बात स्पष्ट करना आवश्यक है
कि बायोमेडिकल चिकित्सा की कथित श्रेष्ठता के युग में स्वाइन फ्लू से बचाव की
एकमात्र विश्वसनीय विधि सालाना वैक्सीनेशन ही मानी जाती है। ध्यान ये भी रखना है
कि आयुर्वेद-सम्मत रणनीति केवल दवाई नहीं अपितु आयुर्वेद की समग्रता पर आश्रित है।
बता दें कि ये लेखक एक निजी विचार हैं और ‘सार्वभौमिक
कल्याण के सिद्धांत’ से प्रेरित हैं।
डॉ. दीप नारायण पाण्डेय
इंडियन फॉरेस्ट सर्विस में वरिष्ठ अधिकारी
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