श्री कृष्ण हैं जीवन का आधार
श्री कृष्ण जन्माष्टमी का दिन बडा ही पवित्र और खास है जैनियों के भावी तीर्थकर और वैदिक पंरपरा के नारायण श्रीकृष्ण के अवतरण का दिन है इस दिन कृष्ण ने पूरी दुनियां को कर्मयोग का पाठ पढाया। उन्होंने प्राणीमात्र को यह संदेश दिया कि केवल कर्म करना मनुष्य का अधिकार है।
�इंसान सुख और दुख दोनों में भगवान का स्मरण करता है। भगवान श्रीकृष्ण को सोलह कलाओं का अवतार माना जाता है। यह सच है कि कृष्ण ने सामज के छोटे से छोटे व्यक्ति का सम्मान बढाया, जो जिस भाव से कृष्ण के पास सहायता के लिए आया उन्होंने उसी रूप में उसी इच्छा पूरी की।
�अपने कर्मधर्म से उन्होंने सब लोगों का विश्वास जीत लिया कि आज के समय में भी लोग उन्हें भगवान श्रीकृष्ण के रूप में मानते और पूजते हैं। श्रीकृष्ण पूर्णतया निर्विकारी है। तभी तो उनके अंगों के साथ भी लोग कमल शब्द जोडते हैं। जैसे- कमलमुख, कमलनयन, करकमल, आदि। उनका स्वरूप चैतन्य है।
श्रीकृष्ण ने तो द्रोपती का चीर बढाकर उसे अपमानित होने से बचाया था। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के माध्यम से अर्जुन को अनासक्त कर्म यानी बिना फल के इच्छा किये बिना कर्म करने की प्रेरणा दी। इसका परिणाम उन्होंने अपने निजी जीवन में भी प्रस्तुत किया। मथुरा विजय के बाद में उन्होंने वहां राज्य नहीं किया। निर्बल की सहायता करों- कमजोर व निर्बल कर सहारा बनों। निर्धन बाल सखा सुदामा हो, षंड्यंत्र का शिकार पांडय, श्रीकृष्ण ने सदा निर्बलों को साथ दिया और उन्हें मुश्किलों से उभारा है।