जानिए: कुर्बानी का असल मायने को
कुर्बानी का इतिहास पढिये
इब्राहीम अलैय सलाम एक पैगंबर गुजरे हैं,
जिन्हें ख्वाब में अल्लाह का हुक्म हुआ कि वे अपने प्यारे बेटे इस्माईल जो
बाद में पैगंबर हुए को अल्लाह की राह में कुर्बान कर दें। यह इब्राहीम अलैय
सलाम के लिए एक इम्तिहान था, जिसमें एक तरफ थी अपने बेटे से मुहब्बत और एक
तरफ था अल्लाह का हुक्म। इब्राहीम अलैय सलाम ने सिर्फ और सिर्फ अल्लाह के
हुक्म को पूरा किया और अल्लाह को राजी करने की नीयत से अपने लख्ते जिगर
इस्माईल अलैय सलाम की कुर्बानी देने को तैयार हो गए।
अल्लाह रहीमो
करीम है और वह तो दिल के हाल जानता है। जैसे ही इब्राहीम अलैय सलाम छुरी
लेकर अपने बेटे को कुर्बान करने लगे, वैसे ही फरिश्तों के सरदार जिब्रील
अमीन ने बिजली की तेजी से इस्माईल अलैय सलाम को छुरी के नीचे से हटाकर उनकी
जगह एक मेमने को रख दिया। इस तरह इब्राहीम अलैय सलाम के हाथों मेमने के
जिब्हा होने के साथ पहली कुर्बानी हुई। इसके बाद जिब्रील अमीन ने इब्राहीम
अलैय सलाम को खुशखबरी सुनाई कि अल्लाह ने आपकी कुर्बानी कुबूल कर ली है और
अल्लाह आपकी कुर्बानी से राजी है।