जाने, क्यों और कैसे मनाया जाता है लोहड़ी का त्यौहार
लोहडी उत्तर भारत का एक सबसे लोकप्रिय त्यौहार है। लोहडी को पंजाबी और
हरियाणवी लोग बहुत उल्लास से मनाते हैं। पारंपरिक तौर पर लोहडी फसल की बुआई
और उसकी कटाई से जुडा एक विशेष त्यौहार है। यह मकर संक्रान्ति के एक दिन
पहले मनाया जाता है। मकर संक्रान्ति की पूर्वसंध्या पर इस त्यौहार का
उल्लास रहता है। इन दिनों देशभर में पतंगों का ताता लगा रहता हैं। देश में
भिन्न-भिन्न मान्यताओं के साथ इन दिनों त्योहार का आनंद लिया जाता है। इस
दिन सभी अपने घरों और चौराहों के बाहर लोहड़ी जलाते हैं। आग का घेरा बनाकर
दुल्ला भट्टी की कहानी सुनाते हुए रेवड़ी, मूंगफली और लावा खाते हैं। इस
दिन सब एक-दूसरे से मिलकर इस खुशी को बाटते है।
कब मनाया जाता हैं लोहडी का त्योहार
लोहडी
पौष माह की अंतिम रात को एवम मकर संक्राति की सुबह तक मनाया जाता हैं यह
12 अथवा 13 जनवरी को प्रति वर्ष मनाया जाता हैं। इस साल 2021 में यह
त्यौहार 13 जनवरी, दिन बुधवार को मानाया जायेगा।
कैसे मनाते हैं लोहड़ी
पारंपरिक
तौर पर लोहड़ी फसल की बुआई और उसकी कटाई से जुडा एक विशेष त्यौहार है। इस
दिन अलाव जलाकर उसके इर्दगिर्द डांस किया जाता है। लड़के भांगडा करते है और
लडकियां और महिलाएं गिद्दा करती है। इस दिन विवाहिता पुत्रियों को मां के
घर से त्योहार (वस्त्र, मिठाई, रेवड़ी, फलादि) भेजा जाता है। वहीं, जिन
परिवारों में लडक़े का विवाह होता है या जिन्हें पुत्र प्राप्ति होती है,
उनसे पैसे लेकर मुहल्ले या गांव भर में बच्चे ही रेवड़ी बांटते हैं।
क्यों मनाया जाता लोहडी का त्योहार
यह
त्योहार सर्दियों के जाने और बंसत के आने का संकेत है। इसलिए लोहड़ी की
रात सबसे ठंडी मानी जाती है। इस दिन पंजाब में अलग ही रौनक देखने को मिलती
है। लोहड़ी को फसलों का त्योहार भी कहते हैं क्योंकि इस दिन पहली फसल कटकर
तैयार होती है। पवित्र अग्नि में कुछ लोग अपनी रवि फसलों को अर्पित करते
हैं। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से फसल देवताओं तक पहुंचती है।
कहां से आया लोहड़ी शब्द