करवा चौथ पर सरगी का महत्व
करवा चौथ में सरगी का विशेष महत्व रहता है। घर की जो बडी-बुजुर्ग महिला होती है वो अपने से छोटी बहुओं, बेटियों को सरगी करवाती हैं। सरगी सुबह 4 से 4:30 के बीच होती है। इसमें दूध और फेनी या दूध से बने पदार्थ का महत्व रहता है।
करवा चौथ की शुरूआत उससे 3-4 दिन पहले से ही हो जाती है जब सास अपनी बहू को सरगी...श्रंगार का सामान, फल, मीठा, आदि देती है। यह सरगी सास की तरह से अपनी बहू को सौभाग्यवती बने रहने का आशीवार्द होता है। अब सरगी में पैसे दिए जाते हैं, मान्यता है कि बहू को इन्ही पैसे से पअने लिए श्रगार का सामान, मिठाई, फल आदि लेने चाहिए।
व्रत वाले दिन महिलाएं प्रात. ब्रह मुहूर्त में उठ कर स्नान कर स्वच्छ कपडे पहने कर श्रंगार करके भगवान शिव-पार्वती के आगे माथा टेककर अपने लिए सौभाग्यवती बने रहने का आशीवार्द मांगती हैं क्योंकि माता पार्वती ने कठिन तपस्या करके शिवजी भगवान को प्राप्त अखंड सौभाग्य प्राप्त किया था। उसके बाद अपनी सास द्वारा दी गयी सरगी के रूप में खाने की वस्तुओं जैसे फल, मिठाई आदि को व्रत वाली महिलाएं प्रात: काल में तारों की छांव में ही ग्रहण कर लेती हैं। तत्पश्चात व्रत आरंभ होता है। व्रत यह संकल्प बोल कर आरंभ करना चाहिए....
मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करके चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।