ऊन के गोले, सलाइयां और उधेडबुन
इन हाथों से बुनी बिना बांह वाली जर्सी में ऊन का एक-एक ताना किसी के स्नेह व प्रेम का प्रतीक होता है। कही यह मां का हाथ होता। कहीं बहन तो कहीं पत्नी का। हाथ का स्वेटर भी किस नाप का बनाना है, उसको भी पहनने वाले के शरीर पर बार-बार नापकर देखा जाता। आत्मीय स्नेह के स्पर्शों से गुंथे और बुने हुए यह स्वेटर भरी सर्दी और तीखी ठंड में भी एक नर्म उष्णता की अनुभूति कराते। पहनने वाला भी अतिरिक्त ठसके से यह जताता हुआ इन्हें पहनता है कि देख बुनाई का डिजाइन अनोखा है न। यह भी एक प्रतिस्पद्र्धा का विषय होता था कि किसके स्वेटर या जर्सी का डिजाइन मात दे रहा है। बीस नंबर या दस और बारह नंबर की सलाइयों का प्रयोग करके क्या सुंदर गलीचे जैसा पैटर्न बुना जाएगा, यह समझ पाना बहुत मुश्किल होता। किसी परिचिता के आने पर ऊन व सलाइयों से बना वह टुकडा ऐसे छिपा लिया जाता, जैसे किसी को अपना रानीहार किसी की निगाहों से बचाना है कि कहीं डिजाइन कॉमन न हो जाए।