धनतेरस पर पूजा और खरीदारी का शुभ मुहूर्त, जानिए धनतेरस का महत्व

धनतेरस पर पूजा और खरीदारी का शुभ मुहूर्त, जानिए धनतेरस का महत्व

नई दिल्ली। धनतेरस से हिंदू लोग दिवाली के बेहद लोकप्रिय त्योहार की शुरुआत करते है। धनतेरस को बहुत ही शुभ दिन माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन खरीदारी करना शुभ होता है और घर में शुभता लेकर आता है। इस दिन खरीदारी करने से मां लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर प्रसन्न होते हैं और धन-संपत्त िप्राप्त िका वरदान देते हैं।

आज धनतेरस है। वैसे तो कहते हैं कि धनतेरस का दिन इतना शुभ होता है कि इस दिन अगर कोई व्यक्ति पूरे दिन में कभी भी खरीदारी करे तो वह अच्छा ही होगा। पर हर धनतेरस पर खरीदारी करने का शुभ समय होता है, जिसमें खरीदारी और पूजन करने से ज्यादा फल की प्राप्ति होती है।

धनतेरस पर पूजा और खरीदारी का शुभ मुहूर्त-

धनतेरस के दिन शाम 07.30 से 09.00 के बीच में खरीदारी करने का शुभ समय है। पूजा का शुभ समय भी यही है। इसलिए इसी समय में पूजा उपासना भी करें।
प्रदोष काल - 17:49 बजे से 20:18 अपराह्न
वृषभ काल - 19:32 अपराह्न से 21:33 बजे तक
17 अक्टूबर, 2017 को त्रयोदशी तिथि सुबह 12 बजकर 26 मिनट पर शुरू होगी।
18 अक्टूबर, 2017 को त्रयोदशी तिथि सुबह 8 बजे समाप्त होगी।
सूर्योदय के बाद शुरू होने वाले प्रदोषकाल के दौरान लक्ष्मी पूजा की जानी चाहिए।



इस समय ना करें खरीदारी-

धनतेरस के दिन अगर आप पूरे दिन खरीदारी करने की सोच रहे हैं तो अपना इरादा बदल दें। क्योंकि, सायं 03.00 से 04.30 के बीच पूजन और खरीदारी का शुभ मुहूर्त नहीं है। इस बीच खरीदारी या पूजन ना करें। ऐसा करना अशुभ होगा।

इन मन्त्रों का करें जाप...


- ओम ह्रीं कुबेराय नम:
- यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्य अधिपतये धन-धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा

धनतेरस का महत्व-
आज ही के दिन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के जन्मदाता धन्वन्तरि वैद्य समुद्र से अमृत कलश लेकर प्रगट हुए थे, इसलिए धनतेरस को धन्वन्तरि जयन्ती भी कहते हैं। इसीलिए वैद्य-हकीम और ब्राह्मण समाज आज धन्वन्तरि भगवान का पूजन कर धन्वन्तरि जयन्ती मनाता है। बहुत कम लोग जानते हैं कि धनतेरस आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि की स्मृति में मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों में नए बर्तन खरीदते हैं और उनमें पकवान रखकर भगवान धन्वंतरि को अर्पित करते हैं।


लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि असली धन तो स्वास्थ्य है। धन्वंतरि ईसा से लगभग दस हजार वर्ष पूर्व हुए थे। वह काशी के राजा महाराज धन्व के पुत्र थे। उन्होंने शल्य शास्त्र पर महत्त्वपूर्ण गवेषणाएं की थीं। उनके प्रपौत्र दिवोदास ने उन्हें परिमार्जित कर सुश्रुत आदि शिष्यों को उपदेश दिए इस तरह सुश्रुत संहिता किसी एक का नहीं, बल्कि धन्वंतरि, दिवोदास और सुश्रुत तीनों के वैज्ञानिक जीवन का मूर्त रूप है।

धन्वंतरि के जीवन का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग अमृत का है। उनके जीवन के साथ अमृत का कलश जुड़ा है। वह भी सोने का कलश। अमृत निर्माण करने का प्रयोग धन्वंतरि ने स्वर्ण पात्र में ही बताया था। उन्होंने कहा कि जरा मृत्यु के विनाश के लिए ब्रह्मा आदि देवताओं ने सोम नामक अमृत का आविष्कार किया था। सुश्रुत उनके रासायनिक प्रयोग के उल्लेख हैं।
धन्वंतरि के संप्रदाय में सौ प्रकार की मृत्यु है। उनमें एक ही काल मृत्यु है, शेष अकाल मृत्यु रोकने के प्रयास ही निदान और चिकित्सा हैं। आयु के न्यूनाधिक्य की एक-एक माप धन्वंतरि ने बताई है।


#घरेलू उपाय से रखें पेट साफ