बिजली की तरह थिरकने को कहते हैं... हेलन
भारतीय मूल की नहीं होने और यहां के तमाम रीति-रिवाजों से परिचित नहीं होने
के कारण हेलन अकेली हो गई। उनके फे्रंड्स और नजदीकी लोगों का दायरा भी
छोटा था, इसका फायदा अरोरा ने भरपूर उठाया। हेलन की सारा पैसा व सम्पत्ति
हडप तो वे दिलीप कुमार के पास मदद के लिए गई। उनसे प्रार्थना की कि वे कम
से कम उसे बैंक में जमा पैसा दिलवा दिया जाए। कहते हैं कि दिलीप साहब ने
उसे गैंगस्टर करीम लाला के पास जाने की सलाह दी। अरोरा से उसे कुछ पैसा
मिला तो जरूर, लेकिन अरोरा ने अपने गलत प्रभाव का इस्तेमाल कर हेलन को
फिल्में नहीं मिलने दी। उस वक्त हेलन को बस जिंदा और अपना खर्च खुद चलाने
के चक्कर में सीग्रेड फिल्मों में काम करना पड गया। इससे पैसा भी कम मिला
और जो शोहरत पाई थी वह धीरे-धीरे फेड होने लगी।
हेलन को बॉलीवुड में
आखिरी सहारे के रूप में सलीम खान दिखाई दिए, वहीं सलीम ने फिल्मों की पटकथा
लिखने से पहले एक अभिनेता के रूप में अपनी किस्मत आजमाई थी। 1963 में बनी
फिल्म काबलीखन में वे हेलन के साथ खलनायाक बने थे। कुछ वक्त तक दोनों सेट
पर बातें करते और फिर धीरे-धीरे दोनों का मेलजोल बढने लगा। यही रिश्ता और
दोस्ती 1981 में काम आया। सलीन ने शरण में आई हेलन को सहारा दिया।
मार्गदर्शन किया। हेलन जानती थीं कि सलीम साहब पहले से ही शादीशुदा हैं और
उनकी फैमिली उनके कारण बरबाद न हो, इसका उन्होंने पूरा ख्याल रखा। सलीम के
परिवार के सदस्यों ने धीरे-धीरे हेलन को अपने घर का सदस्या मानकर अपना
लिया। वहीं सलीम ने बाकायदा हेलन को दूसरी बीवी का दर्जा भी दिया। आज हेलन
खान फैमिली की एक सम्मानीय सदस्य हैं और जो जिंदगी वह अरोरा के साथ नहीं जी
सकी, उस सब की पूर्ति खान फैमिली हो गई।