संकेतो के माध्यम से करें शिशु से बातें
जब
आपका बच्चा इस दुनिया में अपने नन्हे कदम रखता है, तो उस समय वह सभी बातो
से अनभिज्ञ होता हैं। कुछ समय बाद वह अपने ईर्द-गिर्द के माहौल को थोडा
समझने लगता है। उस समय वह बोलनेमें सक्षम नही होता हैं। तब आप अपने शिशु को
सांकेतिक भाषा से अवगत करा सकते हैं।
लगभग सभी मातांए अपने शिशु से सांकेतिक भाषा में बात करने की कोशिश करती
हैं जैसे- हाथ हिलाकर बॉय करना, फ्लाईग किस देना इत्यादि। लेकिन उन में से
बहुत कम होती हैं जो अपने शिशु को सांकेतिक भाषा सिखाने का प्रयास करती
हैं। जब तक आपका शिशु ठीक तरीके से बोलना नही सीख जाता तब तक आप सांकेतिक
भाषा के माघ्यम से उसकी भावनाओ को ज्यादा अच्छी तरह से समझ सकती हैं। हम
आपको बता रहे हैं की किस तरह आप अपने शिशु को सांकेतिक भाषा सिखा सकती हैं।
पहले स्वय सीखें-
आपके शिशु को सांकेतिक भाषा सिखाने से पहले आपको भी इसका ज्ञान होना आवश्यक
हैं। आप इसकी शुरूआत अपने शिशु की आघारभूत जरूरतों से कर सकती हैं जैसे-
"मम्मी" , "पानी" , "बोतल" , "दूघ" इत्यादि।
घ्यान रखे कि आपके घर में सभी लोग एक ही प्रकार के संकेतो का प्रयोग करें।
जैसे-यदि आप "बोतल" के लिए किसी संकेत का प्रयोग करती हैं और आपके पतिदेव
उसी शब्द के लिए किसी दूसरे संकेत का प्रयोग करेगें तो आपका शिशु उसे नही
सीख पायेगा क्योकि वह अलग-अलग संकेतो से भ्रमित हो जायेगा और आपके सभी
प्रयास व्यर्थ हो जायेंगे।अत: यह सुनिश्चित कर लें कि आपके घर में सभी लोग
एक तरह के संकेतो का प्रयोग करें।
छोटे स्तर से शुरूआत करें -
प्रारंभिक स्तर पर आप बेसिक शब्दो के लिए ही संकेतो का प्रयोग करें। यदि
आप सभी शब्दो के लिए संकेतो का उपयोग करेंगी तो आपका शिशु उसे समझनहीं
पायेगा। अत: आप उसे घीरे-घीरे संकेतो से परिचित करायें।
आप उसे प्रारंभिक स्तर पर ऎसे संकेत सिखाएं जो वह आसानी से सीख सके।
छोटे-छोटे संकेतों को आपका शिशु आसानी से और जल्दी सीख पायेगा। इसलिए आप
छोटे संकेतो से शुरूआत करें तो बेहतर होगा।इस तरह से आपके शिशु के लिए
संकेत सीखना आसान हो जायेगा।
अपनी दिनचर्या में शामिल करें -
जब आपका शिशु छोटे-छोटे संकेतों को सीख जाएं तो आप उसे थोडे कठिन संकेत
सिखाना शुरू करें। इन संकेतो को आप अपनी दिनचर्या में शामिल करें और उसे
अपनी आदत बनाएं।
यदि आप इन संकेतो को अपने शिशु के साथ नियमित या रोजाना प्रयोग नही करेंगी
तो आपका शिशु इन्हे नहीं सीख पायेगा। जैसे- आप जब भी अपने शिशु को दूघ
दें,तो हमेशा उसको संकेत में समझाने की कोशिश करें। जब भी आप अपने शिशु से
संकेतों में बात करें,तो आपकी नजरें उसकी आँखो की तरफ होनी चाहिए। इससे
आपके बच्चो का घ्यान आप की तरफ रहेगा। जब आप ऎसा रोजाना करेंगी तो आपका
शिशु जल्द ही आपके संकेतो और कार्यकलापो को समझने लग जायेगा।
नये संकेतो को जोडे-
आपको प्रत्येक 2-3 सप्ताह में उसे नये संकेतो से अवगत कराना चाहिए। आपका
शिशु 2-3 सप्ताह में उन संकेतो को सीख जायेगा। एक शिशु को थोडे संकेत सीखने
में इतना वक्त तो लग ही जाता है।
इसके बाद घीरे-घीरे आप उसे ऎब्सट्रेक्ट संकेतो से अवगत करायें। जैसे- उसके
हाथ में कोई भी वस्तु देकर उससे वापस मांगे या उसे खडा होने के लिए संकेत
में कहे इत्यादि।
भावो या बॉडी लेंग्वेज के माघ्यम से -
आप अपने शिशु को खेल-खेल में भी बहुत से संकेत सिखा सकती हैं। जैसे आप उससे
रूठने का,गुस्सा होने का या डरने का अभिनय कर सकती हैं। आप अपने चेहरे के
भावों से उसे काफी सिखा सकती हैं।
चित्रो का प्रयोग करें -
आप अपने शिशु को चित्रो के माघ्यम से भी सांकेतिक भाषा सिखा सकती हैं।
चित्र रंगीन और आकर्षक होने चाहिए, जिससे कि आपका शिशु उसकी तरफ आकर्षित हो
सके। जैसे किसी "पार्क" का चित्र या किसी "कार्टून" का चित्र जिसमें अलग
अलग भाव हो। इस माघ्यम से भी आपका शिशु जल्दी सीख पायेगा।
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