बनें एक अच्छी सास और कैसे भरें रिश्ते में ढेर सारा प्यार
सास-बहू का रिश्ता
आज की सास-बहू शोषक और शोषित की पारंपारकि छवि की कैद
से पूरी तरह से आजाद हो गई है। यह बदलाव अचानक नहीं आया, बल्कि दो दशक
पहले से ही समय के साथ दोनों पीढियों ने एक-दूसरे की भावनाओं और जरूरतों को
समझना शुरू कर दिया था। उसी सतत प्रयास की वजह से आज उनके रिलेशन में इतना
खुलापन दिखाई देता है। दरअसल पढी-लिखी होती पुरानी पीढी की महिला ने
बदलते वक्त की नब्ज को पहचान लिया था। उसे यह मालूम था कि जीवन में खुश
रहने केलिए अब हमें नई पीढी के साथ कदम मिलाकर चलना होगा। यही वजह है कि आज
की कामकाजी बहू जब शाम को ऑफिस से घर लौटती है तो सास न केवल उसके लिए चाय
बनाती है, बल्कि उसकी अनुपस्थिति में अपने पोते-पोतियां का भी ख्याल रखती
है। यही वजह है कि आज की बहू कभी सा को अपने साथ शॉपिंग के लिए ले जाती
है तो कभी पार्लर। दोनों एक-दूसरे की आजादी का सम्मान करते हुए साथ मिलकर
घरेलू जिम्मेदारियों का निर्वाह करती है।