फिर तो याददाश्त ठीक रहेगी
बात चाहे बच्चों की करें या बडों की, सब एक ही कश्ती में सवार हैं। क्या करें कुछ याद ही नहीं रहता, अब कहना आप भूल जाइए। दिमाग के घोडों की लगाम ढीली छोडें और इन्हें दौडने दें जब दिमाग करेगा वर्क आउट तभी तो बनेगा चुस्तदुरूस्त। आपको आज भी याद हैं क्या वे बचपन के वे प्यारे-प्यारे से खेल जैसे- जीरो-काटा, जॉइन दा डॉट्स, नाम-वस्तु फिल्म-स्थान आदि जिन्हें खेलते हुए समय कैसे बीत जाता था पता ही नहीं चलता था। इन खेलों से एक और फायदा होता था, वह यह कि इनसे हमारी याद्दाश्त मजबूत होती थी। याद है पहले अपनी सेहेलियों के नंबर हमें मुंहजबानी याद होते थे। पर अब स्थिति उलट है। आज हमें दोस्तों के फोन नंबर याद नहीं रहते हैं और कभी-कभी तो किसी परिचित का नाम भी हम भूल जाते हैं। फिर शरमिंदगी उठानी पडती है। आज बच्चो एकाग्रता में कमी से जूझ रहे हैं और एंगजाम के दिनों में याद्दाश्त बढाने वाली गोलियों पर निर्भर हैं।