नर्सिंग डे पर विशेष : जिंदगी के बुरे हालात ने जीना सिखाया और नर्स बना दिया
जिंदगी के बुरे हालात ने जीना सिखाया और नर्स बना दिया
वक्त और
हालात कब बदल जाए ये कोई नहीं जानता, लेकिन बहुत हद तक हमारी जिंदगी की दशा
और दिशा इस बात पर निर्भर करती है कि हम बुरे हालात का सामाना कैसे करते
हैं। बेसिक हेल्थ केयर सेंटर के अमृत क्लिनिक में काम कर चुकी क्लिनिकल
नर्स सरीता महिड़ा की कहानी भी कुछ इसी तरह की है। वक्त और हालात से लड़कर
सरीता ने अपनी जिंदगी को कैसे संवारा, पढ़िए उनकी जुबानी———
बांसवाड़ा
जिले के घाटोल में जन्मी सरीता शुरू से ही शहरी माहौल में बड़ी हुई। परिवार
की कमजोर आर्थिक स्थिति ने सरीता को शुरू से बेचैन करके रखा। स्कूल फीस
भरनी हो या शादी ब्याह में जाना हो, पिता को लोगों से उधार लेना ही पड़ता
और ब्याज भी चुकाना होता। जैसे तैसे 12वीं कक्षा पास की और घर वालों ने
शादी करवा दी। पति भी बेरोजगार। ससुराल वाले भी पढ़ाना नहीं चाहते थे,
मैंने फिर भी कॉलेज में एडमिशन ले लिया। इसी बीच गांव की ही लड़किया
नर्सिंग कोर्स का फार्म भर रही थीं, मैंने भी भर दिया। ससुराल वालों ने मना
किया, लेकिन मैंने ठान लिया था नर्सिंग तो करूंगी। गहने बेच कर दस हजार
रुपए लाए। खूब मेहनत की स्कॉलरशिप मिल गई। उधारी का पैसा उतार दिया। सैकंड
ईयर में चालीस हजार फीस भरनी थी, अब पैसा कहां से लाउं। पापा के घर गईं,
उनके मिलने वाले से पैसे उधार लिए और फीस भरी। थर्ड ईयर में उधारी चुका दी।
एक संस्थान में नौकरी की और कोर्स पूरा किया।
बेसिक हेल्थ केयर सेंटर पर काम करते आत्मविश्वास बढ़ा
सरीता
बताती हैं कि कोर्स पूरा करने के बाद डेढ़ साल तक बेरोजगार रही। बांसवाड़ा
में एक क्लिनिक पर काम किया, जहां डॉक्टर को फॉलो करना होता है, लेकिन जब
से मैं यहां काम करने लगी हूं, मेरा आत्मविश्वास बढ़ गया है; मैं मरीजों की
बीमारी पता लगा लेती हूं, इलाज कर लेती हूं। क्लिनिक को संभाल लेती हूं।
फील्ड में जाकर बैठकें करना, लोगों को बीमारी के बारे में समझाना, इतने
लोगों के सामने बोलना यहीं आकर सीखा है। सरीता ने अमृत क्लिनिक के कुछ खास
अनुभव शेयर किए आप भी पढ़िए———
मानपुर क्लिनिक पर एक महिला अपनी बच्ची
को लेकर आई जो अतिकुपोषित और टीबी थी। रेफर किया तो घर वालों ने ले जाने से
इनकार कर दिया। गांव में ले गए, भोपे से इलाज करवाने लगे। हम गांव में गए
काउंसलिंग की तो सलूंबर ले जाने के लिए तैयार हुए। घर वाले भूखे थे, उनके
खाने का इंतजाम कर सलूंबर भेजा। वहां से उदयपुर रेफर कर दिया। लेकिन बच्ची
की जान नहीं बच सकी। महिला एक बेटा था, जिसको भी पहले मगर मच्छ निगल गया
था। बच्ची नहीं बच पाने का मुझे आज तक भी दुख है।
इसी तरह मानपुर में एक
हाइपर टेंशन का मरीज आया। ब्लड प्रेशर इतना ज्यादा था कि मशीन से नापा ही
नहीं जा रहा था। डॉक्टर संजना को फोन किया। दवाइयां दी, इंजेक्शन लगाया। दो
घंटे बाद बीपी नार्मल हुआ। अब वो शख्स ठीक है, जब भी क्लिनिक पर आता है
दुआएं देता है। बरकुंडी का एक पेशेंट जिसके टीबी का इलाज चल रहा था। अचानक
इंफेक्शन हो गया। फेफड़ों में पानी भर गया। इंजेक्शन लगाकर नॉर्मल स्थिति
लाने की कोशिश की, फिर उदयपुर रेफर किया; अब वो बिल्कुल ठीक है। लौट कर आने
पर उसने कहा—आप लोग नहीं होते तो मैं मर जाता।
हौसला नहीं टूटने दिया और नर्स बनने के जज्बे को कायम रखा :
अगर
आप में हौसला है तो आप कुछ भी हासिल कर सकते हैं। बस इंसान में सच्ची
प्रतिभा होनी चाहिए। फिर कोई भी कठिनाई उसका रास्ता या उसके हौसले को मात
नहीं दे सकती। बेसिक हेल्थ केयर सेंटर की नर्स राधिका डिंडोर ने भी विपरीत
परिस्थितियों में अपने हौसले को कम नहीं होने दिया। उसने रास्ता जरूर बदला,
लेकिन मंजिल को हासिल करके दिखाया। राधिका ने कुछ इस तरह सुनाई अपनी
जिंदगी में स्कूल से लेकर नर्स बनने तक की कहानी।
डूंगरपुर जिले में
सागवाड़ा के बिलिया बड़गांव में पली बड़ी राधिक डिंडोर के माता—पिता
खेतीबाड़ी ही करते हैं। परिवार में चार भाई व तीन बहनों में उसका पांचवां
नंबर है। घर के पास ही स्कूल होने से आठवीं तक उसे ज्यादा परेशानी नहीं
हुई, लेकिन आठवीं के बाद घर वालों ने दूर भेजने से इनकार कर दिया। जिद की
और हॉस्टल में एडमिशन ले लिया। चार साल वहां रही। बारहवीं पास कर ली। बीए
किया, बीएड करती, लेकिन एमए संस्कृत में एडमिशन हो गया। मना करने के बाद भी
शादी हो गई। पति बीए बीएड है और वे भी चाहते थे कि बीएड करूं, लेकिन मुझे
नर्स बनना था। मैंने खूब मेहनत की और बांसवाड़ा के सरकारी कॉलेज में एडमिशन
हो गया। खर्चे के लिए पति बाहर जाते और कमाकर लाते, फीस भरते। इस बीच
बच्ची हो गई। रातभर बच्ची को संभालती और सुबह पढ़ाई करती। जैसे तैसे वक्त
निकला। कर्जदार भी हो गए। सागवाड़ा के एक क्लिनिक में नौकरी की, कुछ राहत
मिली।
अमृत क्लिनिक ने दूसरों की सेवा के साथ खुद को भी जीना सिखाया
चार
से अमृत क्लिनिक में काम कर रही राधिका बताती है कि बेसिक हेल्थ केयर
सेंटर की ट्रेनिंग में ही बहुत कुछ सीखने को मिला। पहले हम सिर्फ डॉक्टर जो
कहता था वही करते थे। पेशेंट को संभालना मुश्किल होता था, लेकिन अब पेशेंट
को संभालने के अलावा उनकी बीमारी को पता लगाकर इलाज भी कर देते हैं। हां
डॉक्टरों से जरूर मार्गदर्शना लेना पड़ता है। यहां लोगों की सेवा करते हैं
तो उनकी दुआएं भी मिलता है। यह पेश ही सेवा और दुआओं का। राधिक ने भी अपने
अमृत क्लिनिक के अनुभव शेयर किए। पढ़िए———
देवली की हाई डायबिटिक पेशेंट
आईं। उसकी हालत इतनी खराब थी कि देखकर ही डर लगने लगा। पूछा तो पता चला कि
कोल्ड ड्रिंक पीने से उसकी तबीयत बिगड़ी है। पहले से शुगर थी, दवाई देना
भी बंद कर दिया। इंजेक्शन लगाकर घंटों उसे निगरानी में रखा गया। शुगर
कंट्रोल होने के बाद वो ठीक हो गया। अब वो यहां जब भी आती है झोली भरकर
दुआएं देती है।
स्कीन की बीमारी का पेशेंट केसू के पूरे शरीर पर
फुंसियां हो रही थी, उनमें पस पड़ा था। कोई इलाज भी नहीं लिया। साफ सफाई
की। डॉक्टर से मार्गदर्शन लेकर इलाज शुरू किया। सात दिन लगातार इलाज किया,
तब जाकर वो अच्छा हुआ। लोहागढ़ की एक टीबी पेशेंट की तबीयत बिगड़ने पर भी
वो इलाज के लिए राजी नहीं हुई। घर जाकर काउंसलिंग की लेकिन नहीं मानी।
ससुराल से पीहर चली गई। हमने पीहर जाकर समझाया और दवाई चालू की। अब वो ठीक
है।
#गुलाबजल इतने लाभ जानकर, दंग रह जाएंगे आप...