धूम्रपान बढ़ाता है फेफड़ों के कैंसर का खतरा
तंबाकू में फेफड़ों के कैंसर का कारण बनने वाले रयायनों में आर्सेनिक
(चूहे के जहर में पाया जाता है), बेंजीन (कच्चे तेल का एक घटक जो अक्सर
अन्य रसायनों को बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है), क्रोमियम, निकल,
विनाइल क्लोराइड (प्लास्टिक और सिगरेट फिल्टर में पाया जाता है),
पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन, एन-नाइट्रोसेमाइंस, सुगंधित एमाइन,
फॉर्मलाडेहाइड (इमल्मिंग द्रव में पाया जाता है), एसिटालडिहाइड और पोलोनियम
-210 (एक रेडियोधर्मी भारी धातु) शामिल हैं। ऐसे कई कारक हैं जो तम्बाकू
की कार्सिनोजेनेसिस को बढ़ा या घटा सकते हैं - विभिन्न प्रकार के तंबाकू के
पत्ते, फिल्टर और रासायनिक मिश्रण की उपस्थिति या अनुपस्थिति कैंसर होने
के कारक हो सकते हैं।
द्वारका स्थित मणिपाल अस्पताल के कैंसर सर्जन
डॉ.वेदांत काबारा ने कहा कि ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे (जीएटीएस) 2017 के
अनुसार, भारत में आयु 15 वर्ष से अधिक है और वर्तमान में किसी न किसी रूप
में तंबाकू का उपयोग करते हैं। ऐसे वयस्कों की संख्या 28.6 प्रतिशत है। इन
वयस्कों में 24.9 प्रतिशत (232.4 मिलियन) दैनिक तंबाकू उपयोगकर्ता हैं और
3.7 प्रतिशत कभी-कभार के उपयोगकर्ता हैं।
उन्होंने कहा कि भारत में
हर दसवां वयस्क (10.7 प्रतिशत) वर्तमान में तंबाकू का सेवन करता है। 19.0
प्रतिशत पुरुषों में और 2.0 प्रतिशत महिलाओं में धूम्रपान का प्रचलन पाया
गया। धूम्रपान की व्यापकता ग्रामीण क्षेत्रों में 11.9 प्रतिशत और शहरी
क्षेत्रों में 8.3 प्रतिशत थी। 20-34 आयु वर्ग के आठ (12.2 प्रतिशत) दैनिक
उपयोगकर्ताओं में से एक ने 15 साल की उम्र से पहले धूम्रपान करना शुरू कर
दिया था, जबकि सभी दैनिक धूम्रपान करने वालों में से एक-तिहाई (35.8
प्रतिशत) ने जब वे 18 साल से छोटे थे तब से धूम्रपान करना शुरू कर दिया था।
दिल्ली
में इस समय 11.3 प्रतिशत लोग धूम्रपान के रूप में तंबाकू का सेवन करते
हैं, जिसमें 19.4 प्रतिशत पुरुष, 1.8 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं। यहां पर
8.8 प्रतिशत लोग चबाने वाले तंबाकू उत्पादों का प्रयोग करते हैं, जिसमें
13.7 प्रतिशत पुरुष व 3.2 प्रतिशत महिलाएं हैं।
(आईएएनएस)