दिवाली पर पटाखों से सेहत को यूं बचाएं

दिवाली पर पटाखों से सेहत को यूं बचाएं

विशेषज्ञों का कहना है कि 100 डेसिबल से ज्यादा आवाज का बुरा असर हमारी सुनने की क्षमता पर पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार शहरों के लिए 45 डेसिबल की आवाज अनुकूल है। लेकिन भारत के बड़े शहरों में शोर का स्तर 90 डेसिबल से भी अधिक है। मनुष्य के लिए उचित स्तर 85 डेसिबल तक ही माना गया है। अनचाही आवाज मनुष्य पर मनोवैज्ञानिक असर पैदा करती है।

उन्होंने कहा कि शोर तनाव, अवसाद, उच्च रक्तपचाप, सुनने में परेशानी, टिन्नीटस, नींद में परेशानी आदि का कारण बन सकता है। तनाव और उच्च रक्तचाप सेहत के लिए घातक है, वहीं टिन्नीटस के कारण व्यक्ति की याददाश्त जा सकती है, वह अवसाद/ डिप्रेशन का शिकार हो सकता है। ज्यादा शोर दिल की सेहत के लिए अच्छा नहीं। शोर में रहने से रक्तचाप पांच से दस गुना बढ़ जाता है और तनाव बढ़ता है। ये सभी कारक उच्च रक्तचाप और कोरोनरी आर्टरी रोगों का कारण बन सकते हैं।

ऐसे में दिवाली के दौरान पटाखों व प्रदूषण से बचने के लिए क्या सावधानियां बरतें? इस सवाल पर डॉ. अग्रवाल ने कहा कि कोशिश रहे कि पटाखें न जलाएं या कम पटाखे फोड़ें। पटाखों के जलने से कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और सल्फर ऑक्साइड जैसी गैसें निकलती हैं जो दमा के मरीजों के लिए खतरनाक हैं। हवा में मौजूदा धुंआ बच्चों और बुजुर्गों के लिए घातक हो सकता है।

उन्होंने सलाह दी कि प्रदूषित हवा से बचें, क्योंकि यह तनाव और एलर्जी का कारण बन सकती है। एलर्जी से बचने के लिए अपने मुंह को रूमाल या कपड़े से ढक लें। दमा आदि के  मरीज अपना इन्हेलर अपने साथ रखें। अगर आपको सांस लेने में परेशानी हो तो तुरंत इसका इस्तेमाल करें और इसके बाद डॉक्टर की सलाह लें। त्योहारों के दौरान स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं। अगर आपको किसी तरह असहजता महसूस हो तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लें।

--आईएएनएनएस

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