नरक चतुर्दशी-रूप चतुर्दशी

नरक चतुर्दशी-रूप चतुर्दशी

ब्रह्मा जी की पावन सृष्टि में पृथ्वी को पुराणों में स्वर्ग से भी सुन्दर और तपोभूमि बतलाया गया है। यहां पर विभिन्न कल्पों और युगों में देव योनियां सहित कई अन्य योनियां जैसे यक्ष, गंधर्व, किन्नर, राक्षस, इत्यादि इस धरती का सुख भोगने के लिए आते रहें हैं। प्रकृति का विधान है कि जिस किसी ने भी इस तपोभूमि पर जन्म लिया है उसे यहां से अपने प्राण त्याग कर ही अन्य लोक में जाना प़डता है और जिसने यहां जन्म लिया है उसकी मृत्यु भी निश्चित है।
यहां पर अन्य लोकों से तात्पर्य स्वर्ग लोक, नरक लोक यमलोक, गोलोक, शिवलोक, पितर लोक इत्यादि हो सकते हैं। मनुष्य के पृथ्वी पर एक निश्चित काल को भोगने के पश्चात् उसके प्राण हरण करके यमराज सर्वप्रथम उसके कर्म का लेखा-जोखा देखकर उसके यम लोक में रहने या उससे मुक्ति का निर्णय करते हैं। यम लोक में ब्ौठे यमराज पृथ्वी पर स्थित उस न्यायाधीश के समान है जो मुल्जिम को उसके कर्मो के अनुसार सजा सुनाता है कि उसे एक साधारण जेल में सहज रहना है या सैन्ट्रल जेल में या आजीवन कारावास या मृत्यु दण्ड अथवा जमानत पर रिहा किया जा सकता है। इस प्रकार यमराज कर्मो के अनुसार प्राणी का दण्ड निश्चित करते हैं।
यमराज के बन्धन में से मुक्त होने के लिए पृथ्वी पर किए उसके धर्म, सत्कार्य, ईश्वर भजन, जप आदि ही उसकी यमलोक को पार करने में नाव रूप में सहायता करते हैं। इन्हीं कर्मो के बल पर उसे यमराज के बन्ध से मुक्त होकर अन्य लोको में जाने के लिए मार्ग दिखता है। यदि मनुष्य पाप या दुष्कार्य करेगा तो उसे इस कुकृत्य की सजा यमलोक में अवश्य ही भोगनी प़डेगी। महाभारत के आख्यान अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर सशरीर स्वर्ग तो गए परन्तु उन्हें भी अपने एक झूठ बोलने की गलती के कारण यमलोक का दर्शन करना प़डा था तो फिर साधारण प्राणी की तो बिसात ही क्या है। उसे तो सदैव ही सत्कार्य में संलगA रहना चाहिए। मानव कल्याणार्थ यम लोक की यातनाओं से मुक्ति के लिए ऋषियों ने कई विधान, वेदों और पुराणों के माध्यम से प्रस्तुत किए हैं, इन्हीं विधानों में से एक है नरक चतुर्दशी व्रत और दीपदान। नरक चतुर्दशी दीपावली के एक दिन पूर्व मनाई जाती है। यह कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी होती है।
वैसे तो कार्तिक मास में शरीर पर तेल लगाने का निषेद्ध है परन्तु इस दिन जो व्यक्ति सूर्योदय से पूर्व उठकर अपने शरीर के तेल लगाकर व अपामार्ग से दाँत माँज कर स्नान करता है उसके सभी पापों का नाश होता है और उसकी सद्गति का मार्ग खुलता है। उसे नरक से भी छुटकारा मिलता है। अपामार्ग से प्रकार का पौधा है। अपमार्ग प्रोक्षणका मंत्र - सितालोउसमायुक्तं सकण्ट कदलान्वितम् । हर पापममार्ग भ्राम्यमाण: पुन: पुन:। चतुर्दशी को लगाए जाने वाले तेल में लक्ष्मी जी तथा जल में माँ गंगा का वास रहता है। तेल और अपामार्ग की पत्तियों से युक्त जल से स्नान करने से शरीर से अच्छी सुगन्ध आने लगती है और व्यक्ति का स्वरूप तेजोमय होकर उसका रूप भी निखर आता है इस लिये उसे रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है। यमलोक से मुक्ति व यमराज की प्रसन्नता के लिए स्नान के पश्चात यमराज की दक्षिणाभिमुख होकर तिलयुक्त जल से जलाञ्जलि देकर यमराज का तर्पण किया जाता है। इसके बाद विभिन्न नाम मंत्रों से चार बत्तियों वाला दीप घर पर तथा प्रदोषकाल में अन्य दीप सभी देवताओं सहित यमराज के निमित्त भक्ति भाव दीपदान करना चाहिए। सभी पवित्र स्थानों पर भी दीप जलाना चाहिए। जो व्यक्ति इस पर्व पर दीपदान करता है उसे प्रेत बाधा कभी नहीं सताती है इस लिए इसे प्रेत चतुर्दशी भी कहते हैं। वैसे तो पंच दिवसात्मक पर्व दीपावली के पांचों दिन ही किसी न किसी घटना के कारण रामराज को समर्पित है चाहे वह धनतेरस हो या भाई दूज (यम द्धितीया) सभी पांचों दिन यमराज के निमित्त विभिन्न दीप दान का महत्व है परन्तु नरक चतुर्दशी का महत्व इससे कहीं अधिक है।
नरक चतुर्दशी के पीछे वामन पुराण में एक आख्यान है राजा बलि के यज्ञ को भंग करके वामन भगवान ने पृथ्वी से सम्पूर्ण ब्रrााण्ड को नाप लिया था और राजा बली को पाताल में शरण दी। बली के द्वारा मांगे वर के अनुसार जो मनुष्य इस पर्व पर दीप दान करेगा उसके यहाँ स्थिर लक्ष्मी का वास होगा और वह यम यातना से दूर रहेगा। इसी संदर्भ में एक अन्य आख्यान मिलता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध करके तीनों लोकों को भयमुक्त किया और उस उपलक्ष्य में लोगों ने घी के दीप जलाये थे। इस लिये इसे छोटी दीपावली भी कहते हैं। अत: यम यातना से मुक्ति और स्थिर लक्ष्मी की प्राçप्त के लिए इस दिन प्रदोष काल में घर के मुख्य द्वार के बाहर चार बत्तियों वाला दीपक जलाना चाहिए और लोक कल्याणार्थ घर पर दीपदान करना चाहिए। दीप सायंकाल में जब सूर्य अस्त हो रहे हों, उस समय प्रज्ज्वलित करने चाहिए।