रिश्तों को संजोयें मगर प्यार से
यह सच ही है कि मानवीय संबंधों और व्यवहार-कौशल का आपस में गहरा नाता है या फिर ऎसा भी कह सकते हैं कि दोनों एक-दूसरे के संपूरक हैं तो गलत न होगा। मानवीय संबंधों में उष्मा और प्रगाढता का आधार ही हमारा श्रेष्ठ व्यवहार-कौशल है।
अकसर ऎसा देखा गया है कि हम दूसरों को अपने नियम, मंतव्य और स्वभाव के अनुसार कार्य और जीवनशैली अपनाने के लिए बाध्य करते हैं। हम चाहते हैं कि दूसरे सदैव हमारे तरीके से चलें। इस तथ्य को हमें स्वीकार करना ही होगा कि दूसरों को जबरदस्ती सुधार देने और अपने मत, विचार या दृष्टिकोण को बलात लादने से न तो सुधार होता है, न ही दोनों पक्ष मन में प्रसन्नता का अनुभव करते हैं, बल्कि इसका गहरा प्रभाव आपसी संबंधों पर पडता है।
किसी के अहं पर सीधा प्रहार करना, बातों-बातों में नीचा दिखाना या प्रत्येक कार्य में नुक्स निकालकर आलोचना करना और खुद को सबसे ज्यादा बेहतर समझना। इन सबसे हमेशा ही आपसी व्यवहार में कटु अनुभव ही मिलते हैं और संबंध बिगडते ही हैं। किसी को बदलने के लिए ये उपाय कभी प्रभावी नहीं रहे।
यदि हम दूसरों पर अपना बेहतर प्रभाव छोडना चाहते हैं और उन्हें अपने विचारों के अनुसार चलाना चाहते हैं, तो सर्वप्रथम उनके दृष्टिकोण को बदलना अति आवश्यक है। इसके लिए अपने पक्ष को सौहार्दपूर्ण तरीके से रखना चाहिए। किसी भी विषय विशेष पर तर्क-कुतर्क हमें उलझा देते हैं। दूसरों को भी अपना पक्ष रखने का अवसर मिलना चाहिए। किसी भी विषय पर विमर्श के दौरान अहं को सदैव दूर रखिए।
इस बात का पूरा विश्वास रखिए कि आपके द्वारा किए गए प्रेमपूर्ण व सहानुभूतिजन्य व्यवहार से दूसरे न केवल सभी बातें सुनने के लिए विवश होंगे, बल्कि आपके अनुसार ही स्वयं को ढालने की पूर्ण चेष्टा भी करेंगे। आपके व्यवहार-कौशल की प्रशंसा भी होगी। सदैव आदेशात्मक स्वरूप के बजाय सहयोग प्राप्त करने की आकांक्षा से हमें दूसरों का सहयोग अधिक प्राप्त होता है। इस तरह सही और संतुलित व्यवहार-कौशल आपसी संबंधों को सुधारता भी है और मधुरता का संचार करने के साथ ही मजबूती भी प्रदान करता है।