सिरदर्द न बन जाए शादी!
कई सामाजिक बंधनों और कठिनाइयों को पार कर हर लडकी सफल पेशेवर जिंदगी बनाती है पर विवाह उपरांत अचानक ही अपनी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं को खत्म कर देना उसके लिए संभव नहीं होता। ऎसे में शादी को लेकर लडकी का मन कई आशंकाओं से घिरा रहता है। कब बनती है शादी अडचन शादी के बाद ऎसी कौन-सी स्थितियां होती हैं जिनके कारण शादी एक अडचन बन जाती है- घर की पूरी जिम्मेदारी : हमारे समाज में उसे केवल एक गृहिणी समझकर घर का भार उसके कंधों पर डाल दिया जाता है। ऎसे में ऑफिस और घर दोनों को संभालने की जद्दोजहद में या तो उसे नौकरी छोडनी पडती है या ऑफिस में उसकी क्षमताएं कम हो जाती है।
काम को महत्व नहीं : अपने करियर की सफलता लडका और लडकी दोनों के लिए समान महत्व रखती है। लेकिन सामान्यत: परिवारों में देखा जाता है कि जितना सहयोग और महत्व पति को नौकरी में मिलता है, उतना पत्नी को नहीं मिलता।
ऎसा व्यवहार उसे हतोत्साहित कर देता है।
दोहरा व्यवहार : परिवार का दोहरा व्यवहार बहू के लिए बहुत बडा आघात होता है। जैसे एक ही घर में अगर बहू और ननद दोनों ही पेशेवर हैं तो ऑफिस से आने पर बहू से ही घर के काम की अपेक्षा की जाती है ननद से नहीं, इस तरह का दोहरा व्यवहार शादी के बाद परेशानी का सबब बन जाता है।
परफेक्शन की उम्मीद : शादी के बाद ससुराल वाले लडकी से प्रत्येक क्षेत्र में परफेक्शन की उम्मीद रखते हैं कि वह एक परफेक्ट बहू, पत्नी, भाभी बनकर रहे जबकि ऎसा होना संभव नही होता। सर्वस्व न्यौछावर : एक बहू से उम्मीद की जाती है कि वह शादी के बाद अपना सर्वस्व परिवार पर न्यौछावर कर दे। अगर नौकरी भी करे तो घर की जरूरतों के हिसाब से, ससुराल वालों की ऎसी सोच बहू के सपनों को पूरा नहीं होने देती।
बाधा बनती रूढिवादिता : अक्सर देखने में आता है कि कई लोग अपनी रूढिवादिता के चलते बहू को नौकरी करने से ही मना कर देते हैं। उनको लगता है कि घर की बहू बाहर नहीं जा सकती। समयाभाव और मानसिक तनाव : डॉक्टरों के अनुसार घर और नौकरी एक साथ संभालने के चक्कर में लडकियां अपने लिए समय नहीं निकाल पाती। हर वक्त थकान, तनाव, चिंता उन्हें घेरे रहती है। ऎसी मानसिक तनाव की स्थिति में कई बार रिश्ते टूट जाते हैं जब वे शारीरिक और मानसिक समस्याओं से घिर जाती है।
क्या करें- शादी का जिंदगी में एक महत्वपूर्ण स्थान है इसलिए लडकियां कई आशंकाओं के बाद भी शादी को स्वीकारती हंै। लेकिन ऎसे में जरूरी है कि लडकी के ससुराल वाले व लडकी कुछ बातों का ध्यान रखे तो कोई भी अडचन नहीं आएगी।
घर की जिम्मेदारियों का बंटवारा : घर और ऑफिस साथ-साथ संभालना बेहद मुश्किल होता है। अगर बहू ऎसा करती है तो एक मोर्चे पर कमजोर जरूर पड जाती है। ऎसे में लडकियां घर की जिम्मेदारियों को आधा-आधा बांटने या कुछ हिस्सा ही सही, बांटने की अपेक्षा रखती हैं इसलिए ससुराल वालों को चाहिए कि घर के सदस्यों में काम बांट दें।
पति का साथ : लडकी उम्मीद करती है कि हर कदम, हर मुश्किल में चाहे घर हो या नौकरी उसे पति का साथ मिले। क्योंकि पति भी पत्नी की ही तरह एक पेशेवर जिंदगी जीता है, इसलिए पत्नी उससे सहयोग और साथ की उम्मीद रखती है।
तरक्की को महत्व : जब तक परिवार का सहयोग न हो तो किसी भी इंसान के लिए सफलता प्राप्त करना संभन नहीं होता। लडकियां भी परिवार से इसी सहयोग और अपनी नौकरी के महत्व को समझने की आशा करती हैं। इसलिए उनके काम को समझा जाए और उन्हें आगे बढने में मदद मिले।
बाहर भी एक जिंदगी : जब लडकी बाहर काम करती है तो वहां भी उसकी एक अपनी जिंदगी होती है। ऑफिस का काम, वहां के दोस्त, जिम्मेदारियां, उसकी जिंदगी का हिस्सा होते हैं। ऎसे में पेशेवर मजबूरियों और डे्रस कोड, ऑफिस का समय, फोन कॉल,ऑफिस ट्रिप आदि मामलों में उसकी स्थिति को समझा जाए।
समय प्रबंधन : पेशेवर जिंदगी में पति-पत्नी का एक-दूसरे को कम समय दे पाना सामान्य स्थिति है, ऎसे में रिश्तों में खटास भी आ जाती है। ऎसे समय में दोनों को समझदारी से काम लेना चाहिए। समय के इस अभाव के लिए केवल पत्नी को ही जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं। शादी के बाद लडकी ससुराल में एक नए बच्चो के समान होती है। उस परिवार से वह प्यार, लगाव और सम्मान की उम्मीद करती है जब उसे यह सब मिलता है तो वह स्वयं उस परिवार में जम जाती है। लेकिन एक तरफा समर्पण भी रिश्तों को संपूर्ण नहीं बनाता, इसलिए थोडा सा आपसी सहयोग प्रत्येक डर और संकोच को खत्म कर रिश्तों में मिठास ला देता है।
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