शादी की कोचिंग
पता नहीं, शादी के बाद मुझे ससुराल में जींस पहनने देंगे या नहींक् हमेशा साडी तो नहीं पहननी होगीक् मुझसे पहली बार जाने कौन सी डिश पकवाएंक् पति को मेरी कौनसी बातें पसंद नहीं आएंक् मम्मी, पापा और भैया के बिना वहां रहना कितना अजीब लगेगाक् कौन जाने सासू मां कैसे स्वभाव की होंगी...आदि आदि। ऎसी ही ढेर सारी बातों को लेकर शादी से पहले ज्यादातर युवतियां परेशान होती हैं और समस्याओं का समाधान उन्हें कहीं से नहीं मिलता।
शादी का नाम सुन कर दिल में गुदगुदी तो होती है पर मन नए रिश्ते की शुरूआत को लेकर कई तरह की आंशकाओं में डूब जाता है। घर में दीदी, मां और सहेलियों की नसीहतें सुन-सुन कर दिल कई बार भयभीत हो उठता है। कभी शादी के खर्चे को लेकर माता-पिता की बहस अखरती है, तो कभी खुद की वेडिंग लिस्ट अधूरी लगती है। दुल्हन की परेशानी को लेकर सहेलियां हमउम्र होने की वजह से कोई खास राय नहीं दे पाती। मां की ज्यादातर नसीहतें रिश्तेदारी निभाने की समझदारी, पाक कला और होने वाली सासू-मां पर केन्द्रित होती हैं। पति-पत्नी के तन व मन से जुडी बातों का जिक्र नहीं होता।
फिर भी उमंगभरे माहौल में घबराहट व तरह-तरह की चिंताओं के बावजूद वे नई आशा लिए विवाह के सुखद बंधन में बंधने के लिए खुद को तैयार करती हैं। विवाह की रेलगाडी प्यार की मधुर पटरी पर चलने लगती है, लेकिन यह सफर बहुत दिनों तक मधुर नहीं बना रहता। कई बार नयी दुल्हन को अपने पति के तन-मन की इच्छाओं और मिजाज को समझने के साथ अपना तन-मन का तालमेल बैठाने में दिक्कत होती है और पति-पत्नी के बीच तकरार, अकेलापन व आगे चलकर तलाक की भी नौबत आ जाती है। वैवाहिक जीवन में कदम रखने से पहले रिश्ते और उसकी मर्यादा के साथ-साथ कई पहलुओं को समझ लिया जाए तो विवाह में टूटन, बिखराव और अलगाव की नौबत नहीं आएगी। इसके लिए घर की किसी बुजुर्ग महिला की नसीहतों के अलावा दुल्हन के लिए वेडिंग कोचिंग बढिया रहती है, जहां उसे पति-पत्नी के संबंधों से ताल्लुक रखने वाले छोटे से छोटे सवालों के जवाब काउंसलिंग में मिलते है।
वेडिंग स्ट्रेस कोचिंग
अमेरिका व ब्रिटेन जैसे समृद्ध देशों में तलाक की संख्या ज्यादा हाने के कारण पति-पति की वेडिंग काउंसलिंग करायी जाती थी। लेकिन अब वेडिंग स्ट्रेस कोचिंग सेंटर भी खुलने लगे हैं जिससे विवाह के बाद ही नहीं, विवाह से पहले स्त्री-पुरूष को एक-दूसरे की पसंद-नापसंद, इच्छा-अनिच्छा आदि को समझने में आसानी हो। एक-दूसरे की तन-मन की भाषा के साथ-साथ फैमिली प्लानिंग पर विचार कर सकें। यह स्टडी कोचिंग से बिलकुल अलग है। इसके लिए सालभर या 6 महीने क्लास लेने की जरूरत नहीं होती। सिर्फ 2-3 सीटिंग ही काफी है। भारत में भी बदलते सामाजिक परिवेश और तलाक की बढती संख्या को दखतेे हुए विवाह से पहले युवक-युवतियों की काउंसलिंग शुरू होने लगी है। महानगरों में इक्के-दुक्के वेडिंग कोचिंग सेंटर भी खुलने लगे हैं। सवाल उठता है कि भारत में पहले कभी इस तरह की शिक्षा की जरूरत क्यों नहीं पडीक् अब क्यों जरूरत महसूस होने लगी हैक् भारतीय समाज में विवाह से पहले पढाए जाने वाला पाठ हास्यास्पद लगता है, लेकिन मैरिज काउंसलर इसे बदलते हुए सामाजिक परिवेश के लिए जरूरी मानते हैं। मैरिज काउंसलर की माने तो आज की पीढी में पहले की तुलना में समर्पण, धैर्य और त्याग जैसी भावना काफी कम होने लगी है।
गृहस्थी की गाडी चलाने के लिए पति-पत्नी नाम के दोनों पहियों में तालमेल जरूरी है। लेकिन अकसर पति-पत्नी में आपसी समझ का अभाव दिखता है। कामकाजी दुल्हनों को कई बार संयुक्त परिवार ही नहीं, एकल परिवार के दायित्वों को निभाने में भी दिक्कत होती है। कई बार पति के साथ अहम का टकराव भी होता है। नतीजा, वैवाहिक जीवन के उतार-चढाव को मजबूती के साथ संभाल पाना दोनों के लिए कठिन होता है। इसीलिए युवक-युवती को सफल और सुखद परिवार बनाने के लिए खास शिक्षा की जरूरत है। इस खास शिक्षा यानी वेडिंग कोचिंग का प्रचार होने में अभी वक्त लगेगा क्योंकि परीक्षा में बढिया नंबरों से पास होने के लिए माता-पिता अपने बच्चो को कोचिंग दिलवाते हैं, लेकिन बडे होकर यही बच्चो वैवाहिक रिश्तों की हर परीक्षा में सफल हो सकें, इस पर विचार नहीं किया जाता। क्यों जरूरी है मनोचिकित्सक मानते हैं कि सफल रिश्ते के लिए जरूरी है कि युगल दंपती अपने तन-मन को पहले राजी करें। मनोचिकित्सकों के अनुसार विवाह कोचिंग की परंपरा हमारे यहां नहीं है लेकिन विवाह से पहले घर बसाने के लिए व्यावहारिक बातों की शिक्षा जरूर दी जाती है। वेडिंग कोचिंग विदेशी कॉन्सेप्ट है।
लेकिन विवाह के योग्य लडके-लडकियों के लिए यह जरूरी है। विवाह कोचिंग एक तरह से प्रीमैरिटल काउंसलिंग है। वेडिंग कोचिंग में सफल वैवाहिक जीवन के लिए पति-पत्नी को एक-दूसरे के विचारों में सामंजस्य बैठाने की बातें बतायी जाती है। एक-दूसरे का वास्तविकता से परिचय कराया जाता है। दोनों का व्यक्तित्व, संवाद, परंपरा, परिवार, निकटता, सेक्सुअलिटी और भविष्य के लक्ष्यों पर बातें होती है। युगलों पर निर्भर है कि वे किसी बात को ज्यादा तवज्जो देते हैं या किसी विषय में अपनी हिचक दूर करना चाहते हैं। उनके विष्ाय के मुताबिक कोचिंग क्लास में विशेष चर्चा होती है। युगलों की इच्छा के मुताबिक कभी समूह में या फिर कभी अकेले में उन्हें काउंसलिंग दी जाती है। काउंसलरों के मुताबिक युवक और युवतियां अकेले में काउंसलिंग लेने की तुलना में समूह में एक-दूसरे से ज्यादा खुल पाते हैं। आपके शहर में वेडिंग कोचिंग की सुविधा न भी हो तो मैरिज काउंसलर के पास जा कर आप 2 सिटिंग ले सकती हैं। गर्भनिरोध, सेक्स संबंधी किसी तरह की जानकारी स्त्री रोग विशेषज्ञ से भी ले सकती हैं। विवाह सिर्फ 2 लोगों के जीवन को ही आपस में नहीं जोडता बल्कि 2 परिवार, 2 समाज और 2 विभिन्न परंपराओं को जोडता है। वेडिंग कोचिंग में सिर्फ होने वाले दूल्हा-दुल्हन की काउंसलिंग ही नहीं, माता-पिता व सास-ससुर की भी काउंसलिंग होती है जिससे सामान्य मनमुटाव को सुलझाने में मदद मिल सके। विवाह से पहले जब दो लोग एक-दूसरे के बारे में काफी कुछ जान समझ लेते हैं तो सकारात्मक ऊर्जा के साथ मजबूत रिश्ते की शुरूआत होती है। इसके अलावा ऎसे रिश्तेदार, जिन्हें खुश कर पाना मुश्किल हो, उनके बारे में भी बातें मालूम होती हैं और उनके साथ सामंजस्य बैठाने में सहूलियत हो जाती है। आगे चलकर रिश्ते में किसी तरह की कडवाहट पैदा हो और एक-दूसरे के बारे में नकारात्मक सोच मन में पनपे और तानेभरी बातें जवाब में निकले, इससे बेहतर है कि पहले अनुमान लगा लिया जाए कि आप भावी जीवनसाथी के साथ हंसी-खुशी निभा पाएंगे या नहीं। विवाह के चंद सालों के बाद पति-पत्नी एक-दूसरे से कहने लगें कि अगर शादी के पहले मुझे मालूम होता कि तुम ऎसे थे या तुम ऎसी थी तो मैं कभी तुमसे शादी नहीं करती या मैं शादी नहीं करता। या पता नहीं तुम्हारी बहुत अजीत सी आदतें और सोच है,पहले मालूम होता, तो किसी और को चुनती तो ऎसे वाक्य न केवल दिल को ठेस पहुंचाते हैं बल्कि एक-दूसरे से दूर भी करते हैं तो क्यों न पहले वैवाहिक रिश्ते को सहेजने व दिल जीतने के लिए समझदारी का पाठ पढा जाए।
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