हमेशा सकारात्मक विचारधारा अपनाएं, आशावादी बनें, क्योंकि निराशावादी विचारधारा ही इंसान को कुंठित कर असफलता की ओर धकेलती जाती है। आज के प्रगतिशील युग में विकलांग भी पीछे नहीं हैं। वे किसी भी कलात्मक हौबी को निखारकर अपने पैरों पर खडे हो सकते हैं। इस प्रकार वे परिवार में, समाज में आत्मसम्मान से जी सकते हैं। बस देर है सिर्फ अपनी योग्यता की पहचान कर उसमें सम्पूर्ण शक्ति से जुट जाने की। ऎसे लोगों से अपना सम्बन्ध बनायें, जो आपकी तहर महत्वाकांक्षी व परिश्रमी हों तथा सच्चो व दृढ इच्छाशक्ति वाले हों। निराश व्यक्ति का साथ निराशा ही देगा। निराशा सफलता की घोर दुश्मन है। किसी काम में असफल होने पर भाग्य को दोषी ना मानकर पूरी शक्ति व निष्ठा के साथ अपने लक्ष्य की प्राçप्त में जुट जाइये। अपनी आंख अर्जुन की भांति सिर्फ अपने लक्ष्य पर केन्द्रित रखिये।