जानिए, वसंत पंचमी के दिन पीला रंग ही क्यों होता है खास
वसंत
पंचमी या श्रीपंचमी एक हिन्दू त्योहार है। वसंत पंचमी का त्योहार माघ शुक्ल
पंचमी को मनाया जाता है यह वसंत ऋतु के आगमन का सूचक है। इस दिन विद्या की
देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर
बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनाई जाती है।
विद्यार्थी इस दिन किताब-कॉपी और पाठ्य सामग्री की भी पूजा करते हैं।
जिस
दिन पंचमी तिथि सूर्योदय और दोपहर के बीच रहती है, उस दिन को सरस्वती पूजा
के लिए उपयुक्त माना जाता है। इस दिन कई स्थानों पर शिशुओं को पहला अक्षर
लिखना सिखाया जाता है।
इसका कारण यह है कि इस दिन को विद्या आरंभ
करने के
लिए शुभ माना जाता है। वहीं इस दिन स्त्रियां पीले वस्त्र धारण करती है।
कहा जाता है कि इस दिन पीले वस्त्र पहनने से घर में खुशहाली आती है। इस
वर्ष यह 10 फरवरी रविवार को मनाया जाएगा।
सरस्वती के अवतरण की कथा...
कहते हैं इसी दिन मां सरस्वती ने
संसार में अवतरित होकर ज्ञान का प्रकाश जगत को प्रदान किया था। तब से इस
दिन वसन्तोत्सव उल्लास पूर्वक मनाया जाता है। इसके बारे में एक कथा है कि
जब ब्रह्मा जी ने जगत की रचना की तो एक दिन वे संसार में घूमने निकले। वे
जहां भी जाते लोग इधर से उधर दिखाई देते तो थे पर वे मूक भाव में ही विचरण
कर रहे थे। इस प्रकार इनके इस आचरण से चारों तरफ अजीब शांति विराज रही थी।
यह देखकर ब्रह्मा जी को सृष्टि में कुछ कमी महसूस हुई। वह कुछ देर तक सोच
में पड़े रहे फिर कमंडल में से जल लेकर छिडक़ा तो एक महान ज्योतिपुंज सी एक
देवी प्रकट होकर खड़ी हो गई। उनके हाथ में वीणा थी। वह महादेवी सरस्वती थीं
उन्हें देखकर ब्रह्मा जी ने कहा तुम इस सृष्टि को देख रही हो यह सब चल फिर
तो रहे हैं पर इनमें परस्पर संवाद करने की शक्ति नहीं है। महादेवी सरस्वती
ने कहा तो मुझे क्या आज्ञा है। ब्रह्मा जी ने कहा देवी तुम इन लोगों को
वीणा के माध्यम से वाणी प्रदान करो (यहां ध्यान देने योग्य है कि वीणा और
वाणी में यदि मात्रा को बदल दिया जाए तो भी न एक अक्षर घटेगा न बढ़ेगा) और
संसार में व्याप्त इस मूकता को दूर करो।
जगत को मिली वाणी...
ब्रह्मा
की आज्ञा पाते ही महादेवी की वीणा के स्वर झंकृत हो उठे। संसार ने इन्हें
विस्मित नेत्रों से देखा और उनकी ओर बढ़ते गए। तभी सरस्वती जी ने अपनी
शक्ति के द्वारा उन्हें वाणी प्रदान कर दी और लोगों में विचार व्यक्त करने
की इच्छाएं जागृत होने लगी और धीरे धीरे मूकता खत्म होने लगी। आज भी इसी
महादेवी की कृपा से सारा संसार वाणी द्वारा अपनी मनोदशा व्यक्त करने मे
समर्थ है। उस महादेवी वीणावादिनी मां सरस्वती को बार बार नमस्कार है
जिन्होंने संसार से अज्ञानता दूर की एवं जन जन को वाणी प्रदान करने महा
कार्य किया।
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