जानिये राखी बांधने के शास्त्रीय नियम

जानिये राखी बांधने के शास्त्रीय नियम

श्रावणी पूर्णिमा को हर साल रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है, इस बार यह त्यौंहार 11 व कुछ हद तक 12 अगस्त को मनाया जा सकता है। रक्षाबंधन भाई-बहन के अटूट प्रेम और रिश्ते का प्रतीक माना जाता है। इसमें बहन अपने भाई को रक्षासूत्र बांधती है। इस बार रक्षाबंधन को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई हं कि इसे कब मनाया जाए। पूर्णिमा तिथि 11 अगस्त को सुबह 10.30 से शुरू होकर अगले दिन यानी 12 अगस्त को सुबह 7.05 बजे तक रहेगी। इस समय भद्रा भी नहीं है और उदया तिथि भी है इसलिए कुछ लोग 12 अगस्त को सुबह 7.15 बजे तक ही राखी बांधने को शुभ मान रहे हैं। हालांकि अधिकतर लोग 11 अगस्त को ही रक्षाबंधन पर्व मना रहे हैं। भाईयों को राखी बांधने के भी शास्त्रों अनुसार कुछ नियम हैं कहते हैं हमेशा भाई की कलाई पर इन शास्त्रों द्वारा बताए अनुसार ही राखी बांधनी चाहिए। आइए डालते हैं एक नजर उन नियमों पर—

1. राखी बंधवाने के लिए भाई को हमेशा पूर्व दिशा और बहन को पश्चिम दिशा की ओर मुख करना चाहिए। ऐसा करने से आपकी राखी को देवताओं का भी आशीर्वाद प्राप्त होगा।
2. राखी बंधवाते समय भाइयों को सिर पर रुमाल या कोई स्वच्छ वस्त्र होना चाहिए।
3. काले कपड़े नहीं पहनने चाहिए क्योंकि इससे नकारात्मकता ऊर्जा आकर्षित होती है।
4. बहन भाई के दाहिने हाथ की कलाई पर राखी बांधे और फिर चंदन व रोली का तिलक लगाएं।
5. रक्षाबंधन पर भाई की कलाई पर धागा बांधते हुए विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए कि 3 गांठ बांधे, क्योंकि यह 3 गांठ ब्रह्मा, विष्णु, महेश को भी संबोधित करती हैं। इसमें पहली गांठ भाई की लंबी उम्र और सेहत, दूसरी गांठ सुख समृद्धि और तीसरे रिश्ते को मजबूत करने की होती है।
6. तिलक लगाने के बाद अक्षत लगाएं और आशीर्वाद के रूप में भाई के ऊपर कुछ अक्षत के छींटें भी दें। माथे पर कभी भी टूटे हुए चावल भी नहीं लगाने चाहिए।
7. इसके बाद दीपक से आरती उतारकर बहन और भाई एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर मुंह मीठा कराएं।
8. भाई वस्त्र, आभूषण, धन या और कुछ उपहार देकर बहन के सुखी जीवन की कामना करें।

राखी बांधने का मंत्र
येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल:।
चंदन लगाने का मंत्र
ओम चन्दनस्य महत्पुण्यं, पवित्रं पापनाशनम्। आपदां हरते नित्यं, लक्ष्मीस्तिष्ठति सर्वदा ॥
सिंदूर, रोली लगाने का मंत्र
सिन्दूरं सौभाग्य वर्धनम, पवित्रम् पाप नाशनम्। आपदं हरते नित्यं, लक्ष्मीस्तिष्ठति सर्वदा॥

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